भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"ऊँची ज़ात / लालसिंह दिल / सत्यपाल सहगल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लालसिंह दिल |अनुवादक=सत्यपाल सहग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 19: | पंक्ति 19: | ||
दो दिल न हो जाएँ इकट्ठे नित पंचायत जुड़ी। | दो दिल न हो जाएँ इकट्ठे नित पंचायत जुड़ी। | ||
वैसे ही न जीने देते पापी लगे इश्क़ बला। | वैसे ही न जीने देते पापी लगे इश्क़ बला। | ||
+ | |||
+ | '''मूल पंजाबी से अनुवाद : सत्यपाल सहगल''' | ||
</poem> | </poem> |
17:00, 12 सितम्बर 2017 के समय का अवतरण
ऊँची ज़ात का लड़का औ' नीची ज़ात की कुड़ी।
यह कहाँ की दयानतदारी, यह कहाँ की कला।
सहमत हो जाते सब इकट्ठे करते हला-हला।
वह होवे तो लिखेंकिताबें इसको ज़हर की पुड़ी।
ग़र नीची ज़ात का लड़का औ ऊँची ज़ात की कुड़ी।
सयाने बनिये इश्क़ न करिए जो चाहते हैं भला।
बिना आज़ादी भूखे मन के भरते नहीं खला।
मुँह से जमते राम-राम औ' बगल में रखते छुरी।
दो दिल न हो जाएँ इकट्ठे नित पंचायत जुड़ी।
वैसे ही न जीने देते पापी लगे इश्क़ बला।
मूल पंजाबी से अनुवाद : सत्यपाल सहगल