भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"इज़्ज़तपुरम्-90 / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=डी. एम. मिश्र |संग्रह=इज़्ज़तपुरम...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

17:40, 18 सितम्बर 2017 के समय का अवतरण

हे ईश्वर
कशमकश से उबार

डूबकर मरूँ तो
डर है
सारे समन्दर में
‘एड्स’ हो घुल जाये

कटकर मरूँ तो
डर है
सम्पूण जंगल में
‘एड्स’ फैल जाये

जलकर मरूँ तो
डर है
पूरे वातावरण में
‘एड्स’-‘एड्स’ हो जाये
जो मेरी आत्मा
कभी नहीं चाहती
कोई और निर्दोष
‘भुक्तभेागी’ हो क्यों?