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कह-मुकरियाँ / अमीर खुसरो

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|रचनाकार=अमीर खुसरो
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१.
रूप रंग सब वा का चाख
भोर भई जब दिया उतार
सखी सखि साजन? ना सखि हार!
१६.
वा बिन सब जग लागे फीका
वा के सर पर होवे कोन
ऐ सखि ‘साजन’ना सखि! ,लोन(नमक)
२०.
भोर भई तब बिछुड़न लागा
उसके बिछुड़त फाटे हिया’
ए सखि ‘साजन’ ना, सखि! दिया(दीपक)  21.राह चलत मोरा अंचरा गहे।मेरी सुने न अपनी कहेना कुछ मोसे झगडा-टंटाऐ सखि साजन ना सखि कांटा! 22.बरसा-बरस वह देस में आवे, मुँह से मुँह लाग रस प्यावे।वा खातिर मैं खरचे दाम, ऐ सखि साजन न सखि! आम।। 23.नित मेरे घर आवत है, रात गए फिर जावत है।मानस फसत काऊ के फंदा, ऐ सखि साजन न सखि! चंदा।। 24.आठ प्रहर मेरे संग रहे, मीठी प्यारी बातें करे।श्याम बरन और राती नैंना, ऐ सखि साजन न सखि! मैंना।। 25.घर आवे मुख घेरे-फेरे, दें दुहाई मन को हरें,कभू करत है मीठे बैन, कभी करत है रुखे नैंन।ऐसा जग में कोऊ होता, ऐ सखि साजन न सखि! तोता।।
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