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"कोयल क्यों नहीं कूकी / अनिरुद्ध प्रसाद विमल" के अवतरणों में अंतर
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रातें बीती
दिन भी बीते
रंग-राग में
फागुन बीता
नूतन अभिसारिका सी
बरसा फिर-फिर आई
महुवे की रस भरी डाल पर
कोयल कूकी
लेकिन मैंने
अपने आंगन में
जो चंदन का वृक्ष लगाया है
उस पर
कोयल क्यों नहीं कूकी ?