"सुपौल को नहीं जानते हैं लोग / कुमार सौरभ" के अवतरणों में अंतर
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बताता हूँ, जिला सुपौल का हूँ | बताता हूँ, जिला सुपौल का हूँ | ||
− | तो पूछते हैं लोग | + | तो पूछते हैं लोग : यह बिहार में कहाँ है? |
− | कोसी-कछार कहने | + | कोसी-कछार कहने या |
− | मधेपुरा का पड़ोसी कहने से | + | मधेपुरा का पड़ोसी कहने से खुलती है |
− | खुलती है इसकी पहचान ! | + | इसकी पहचान ! |
− | सुपौल की अपनी कोई पहचान नहीं है | + | क्या सुपौल की अपनी कोई पहचान नहीं है? |
− | क्या सुपौल की | + | क्या सुपौल की मिट्टी पैदा न कर सकी |
− | कोई झमटगर गाछ ? | + | कोई झमटगर गाछ? |
कोसी बहा ले गयी उसे या | कोसी बहा ले गयी उसे या | ||
− | उखाड़ कर उड़ा ले गयी मधेपुरा की गर्म हवा ? | + | उखाड़ कर उड़ा ले गयी मधेपुरा की गर्म हवा? |
− | क्या सुपौल की मिट्टी कभी चढ़ी नहीं चाक पर ? | + | |
+ | क्या सुपौल की मिट्टी कभी चढ़ी नहीं चाक पर? | ||
गढ़ा न गया कोई बेजोड़ शिल्प या | गढ़ा न गया कोई बेजोड़ शिल्प या | ||
− | हमने ही उपेक्षा की शिल्प और शिल्पकार की ? | + | हमने ही उपेक्षा की शिल्प और शिल्पकार की? |
− | सुपौल को यह क्या होता जा रहा है | + | सुपौल को यह क्या होता जा रहा है ! |
कोसी काटती ही जा रही है किनारे की जमीन | कोसी काटती ही जा रही है किनारे की जमीन | ||
− | + | उगने लगी हैं | |
− | कई किसिम की | + | कई किसिम की जहरीली घासें यहाँ |
− | पनपने लगे हैं छोटे-छोटे गढ़ मठ | + | पनपने लगे हैं |
+ | छोटे-छोटे गढ़ मठ* | ||
चेतना तो कभी थी ही नहीं | चेतना तो कभी थी ही नहीं | ||
अब विस्मृति भी फैलती जा रही है | अब विस्मृति भी फैलती जा रही है | ||
सोचता हूँ ; सुपौल को जानने लगेंगे लोग | सोचता हूँ ; सुपौल को जानने लगेंगे लोग | ||
− | जब यह कोसी या मधेपुरा हो जाएगा | + | जब यह कोसी या मधेपुरा हो जाएगा |
− | लेकिन तब यह बताते हुए कि जिला सुपौल का हूँ | + | लेकिन तब यह बताते हुए कि |
+ | जिला सुपौल का हूँ | ||
आँखें कोसी हो जाया करेंगी | आँखें कोसी हो जाया करेंगी | ||
और चेहरा मधेपुरा !! | और चेहरा मधेपुरा !! | ||
− | + | '''[*साभार मुक्तिबोध की कविता से लिए गए शब्द।]''' | |
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01:58, 11 अक्टूबर 2017 के समय का अवतरण
बताता हूँ, जिला सुपौल का हूँ
तो पूछते हैं लोग : यह बिहार में कहाँ है?
कोसी-कछार कहने या
मधेपुरा का पड़ोसी कहने से खुलती है
इसकी पहचान !
क्या सुपौल की अपनी कोई पहचान नहीं है?
क्या सुपौल की मिट्टी पैदा न कर सकी
कोई झमटगर गाछ?
कोसी बहा ले गयी उसे या
उखाड़ कर उड़ा ले गयी मधेपुरा की गर्म हवा?
क्या सुपौल की मिट्टी कभी चढ़ी नहीं चाक पर?
गढ़ा न गया कोई बेजोड़ शिल्प या
हमने ही उपेक्षा की शिल्प और शिल्पकार की?
सुपौल को यह क्या होता जा रहा है !
कोसी काटती ही जा रही है किनारे की जमीन
उगने लगी हैं
कई किसिम की जहरीली घासें यहाँ
पनपने लगे हैं
छोटे-छोटे गढ़ मठ*
चेतना तो कभी थी ही नहीं
अब विस्मृति भी फैलती जा रही है
सोचता हूँ ; सुपौल को जानने लगेंगे लोग
जब यह कोसी या मधेपुरा हो जाएगा
लेकिन तब यह बताते हुए कि
जिला सुपौल का हूँ
आँखें कोसी हो जाया करेंगी
और चेहरा मधेपुरा !!
[*साभार मुक्तिबोध की कविता से लिए गए शब्द।]