"डर / कुमार सौरभ" के अवतरणों में अंतर
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भानस<ref>भोजन</ref> बनाने | भानस<ref>भोजन</ref> बनाने | ||
जतन से जुट जाएगी बड़की भौजी | जतन से जुट जाएगी बड़की भौजी | ||
− | छोटकी तो | + | छोटकी तो खाली गप्पे हाँकेगी |
दूल्हा भी चुटकी लेने में कम माहिर नहीं | दूल्हा भी चुटकी लेने में कम माहिर नहीं | ||
ही...ही... कर निपोड़ेगा | ही...ही... कर निपोड़ेगा | ||
पान के दाग़वाली बत्तीसी | पान के दाग़वाली बत्तीसी | ||
− | दूरे से छुपकर | + | दूरे से छुपकर सुनेगी निरमलिया |
कुछ समझेगी | कुछ समझेगी | ||
− | कुछ कपार के उपरे | + | कुछ कपार के उपरे से बह जाएगा |
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निरमलिया के लिए | निरमलिया के लिए | ||
कौतूहल का विषय है दूल्हे की मूँछ | कौतूहल का विषय है दूल्हे की मूँछ |
02:02, 11 अक्टूबर 2017 के समय का अवतरण
निरमलिया जाग गे
देख, तेरा दूल्हा आया है
देख तो, क्या-क्या सनेस लाया है!
काकी बोली-
हमहूँ तो सोच रही थी
भोरे-भोरे कौआ क्यों कुचर रहा था
भनसाघर<ref>रसोईघर</ref> के चार<ref>फूस की छत</ref> पर
भानस<ref>भोजन</ref> बनाने
जतन से जुट जाएगी बड़की भौजी
छोटकी तो खाली गप्पे हाँकेगी
दूल्हा भी चुटकी लेने में कम माहिर नहीं
ही...ही... कर निपोड़ेगा
पान के दाग़वाली बत्तीसी
दूरे से छुपकर सुनेगी निरमलिया
कुछ समझेगी
कुछ कपार के उपरे से बह जाएगा
निरमलिया के लिए
कौतूहल का विषय है दूल्हे की मूँछ
घी लगाकर चमकाता होगा!
सखियाँ कहती हैं बड़भाग तेरे
सोलहवाँ बसंत भी न देखा
ब्याही गई!
निरमलिया के दिमाग़ में
बहुत कुछ चलता रहेगा
सखियों की बातें याद कर रोमांच हो आएगा
भौजियों की चुहल से लजाएगी भी...
...रात गए लेकिन
उसका कलेजा धकधकाने लगेगा
टाँग में जैसे लक़वा मार जाएगा
लाख कोशिशों के बावजूद
उस घर की ओर उठता नहीं रहेगा
जिसमें उसका दूल्हा पलंग पर पलथा मारे
करियाई कड़ी मूँछ पर हाथ फेर रहा होगा!!