भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"और चांद को रात से मोह हो गया / निधि सक्सेना" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=निधि सक्सेना |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

15:03, 12 अक्टूबर 2017 के समय का अवतरण

और चांद को रात से मोह हो गया
अंधेरा होते ही उफ़क पर चढ़ आता
देर तक उससे बतियाता
उस पर तारे बरसाता
उसके सम्मोहन में बँधा
नित नए रूप धरता
कभी रागी
परिपूर्ण और शांत
चाँदनी को अलफ़ाज़ बनाता
कभी विरागी
आधा अनमनस्य
नज़्मों के लिबास पहने रहता
कभी अनुरागी
झीना-झीना प्रेम लपेटे
दिखता छिपता
कोई गीत गुनगुनाता
मुस्कुराता

रात निशब्द कदमों से चलती
भोर के मुहाने तक
विलुप्त होने

परंतु लोकातीत था चाँद का प्रेम
उसने कभी रात को
किन्ही अनुबंधों में नही बाँधा
केवल अपनी प्रभा से
रात का सौंदर्य
अनावृत किया

रात अक्सर अश्कों से भीग जाती
अभिभूत
अनुरक्त
बगैर किसी अनुबंध चाँद से बंधती जाती.