भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"बारिश / निधि सक्सेना" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=निधि सक्सेना |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
15:25, 12 अक्टूबर 2017 के समय का अवतरण
क्षणभंगुर और नाज़ुक
बगैर थमे झरती बारिश की बूंदे
अक्सर बाँध लेती हैं वक्त
कि भोर, एकपहर, दोपहर, तीनपहर, सांझ
सब एक सरके नज़र आते हैं
बून्द पर बून्द
पुलक पर पुलक
ठहर गया है वक्त
आगे बढ़ने से इंकार कर रहा है
बारिश की लोरी सी महक में
देर तक सोते रहने की तलब है
न जल्द जगाने को सूरज है
न रात देर तक अगोरता चाँद
बस फलक भर बादल है
और बारिशें बहाना है
जिन्हें दिल ढूंढता था
शायद यही वो फुर्सत के रात दिन हैं.