भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"वह जागी है / जया पाठक श्रीनिवासन" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जया पाठक श्रीनिवासन |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
09:42, 13 अक्टूबर 2017 के समय का अवतरण
वह जागी है आज
मध्य रात्रि
खड़ी है
स्वप्न सी
कोरे कनवास के सामने
इतनी रात गए?
क्यों भला?
रोज़ तुम्हारे आफ़ताबी उजाले में
चाँद सा आइना बनती
थक गयी थी वह
रात भरे अंधेरे एकांत में
अब खोजती है
अलग अपने नक्श
अंतस के महीन रंगों में
डुबो अपनी उंगलियाँ
कोरे कनवास पर फेर
वह उकेर रही है
अपना आप
आज वह केवल प्रतिबिम्ब नहीं
एक चित्र हो जाना चाहती है.