भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"गाने लगेंगे प्रेम-गीत पाहन / दिनेश श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दिनेश श्रीवास्तव |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
14:18, 13 अक्टूबर 2017 के समय का अवतरण
तुम न झुकाओ पलकें,
रीती हो जाएगी
सपनों की गागर.
तुम न ओंठ थिरकाओ,
होगा उद्वेलित
चाहत का सागर.
तुम न आँचल लहराओ ,
आहों का ढेर
लग जायेगा आँगन.
तुम अब न मुस्काओ,
गाने लगेंगें
प्रेमगीत पाहन.
(प्रकाशित- विश्वामित्र, कलकत्ता, १९७९)