भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"काठ और लोहा / दीपिका केशरी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दीपिका केशरी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
16:54, 13 अक्टूबर 2017 के समय का अवतरण
प्रेम में डूबी स्त्री काठ हो जाती है
और
प्रेम में डूबा पुरुष लोहा !
फिर उस काठ से
चौखटें, दरवाज़े, खिड़कियां, अलमारियां
संदूक बनाएं जाते हैं
उन सारी वस्तुओं में लोहे की कील ठोकें जाते हैं
इस तरह से प्रेम चौखटों, दरवाजों, खिड़कियों,
अलमारियों और छोटे बड़े संदूको में वर्षों जीवित रहता !