भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
एक खारे जल के पहाड़ ने
लील लिया
वह निस्पंद महानगर
कमरे में टंगे प्रेमिकाओं के चित्र
स्याह पंखों में बदल गए सभी मेजो मेज़ों के कागज़ात औए दस्तावेज़
सोये बच्चों के सिरहाने
पतंग या वसीयत बन कर रखे गए
नारे और गुल और परचे
नहान घर में बह गए वायलिने वायलिनें छिपकिली की लाश बनकर पहाड़ में चस्पां हो गयी
मूर्तियाँ प्रेत बनकर उड़ गयी
और चुप बैठा रहा एक ब्रह्मपिशाच