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"समय दुरूह है / सुरेश चंद्रा" के अवतरणों में अंतर

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कर्कश संगीत से ऊबरो
 
कर्कश संगीत से ऊबरो
मत गुंजाओ व्यर्थ नभ
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बे-सर पैर की कविताओं में
 
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किस ऊर्जा पर जीवित हो
 
किस ऊर्जा पर जीवित हो
किस निमित है तुम्हारा श्रम ???
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एकाकी तुम में तुम्हारा सहजात
 
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सचेत तुम  
 
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प्राथमिकता से द्वित्य हो
 
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समय दुरूह है  
 
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और प्रयोजन के हरेक कृत्य में  
 
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मात्र एक समूह का नृत्य हो !!
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मात्र एक समूह का नृत्य हो.
 
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13:15, 20 अक्टूबर 2017 के समय का अवतरण

कर्कश संगीत से ऊबरो
मत गूँजाओ व्यर्थ नभ

बे-सर पैर की कविताओं में
मत ढूँढो आह!! का अर्थ सुलभ

ऐसे दर्शन को दंड दो
जो तुम्हे दर्प, दम्भ देता हो

उस धर्म को धिक्कार
जो जन्म देता हो भ्रम

किस ऊर्जा पर जीवित हो
किस निमित है तुम्हारा श्रम?

एकाकी तुम में तुम्हारा सहजात
बहकाव, भटकाव से संधि है केवल

महंत स्वग्रंथ लिये अंध पंथ पर
अपनी पीठ पीछे चलवाता ग्रंथी है केवल

सचेत तुम
चेतते नहीं
तुम प्रथम,
प्राथमिकता से द्वित्य हो

समय दुरूह है
और प्रयोजन के हरेक कृत्य में
तुम वृत्त में,
मात्र एक समूह का नृत्य हो.