भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"गीली लकड़ी / जया पाठक श्रीनिवासन" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जया पाठक श्रीनिवासन |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

00:17, 21 अक्टूबर 2017 के समय का अवतरण

सियासत की सर्द आँधियों में
एक गर्म सोच से डरते हो?
गर आग तापना है
तो तैयार रहो
काले कड़वे धुएँ को
पीने के लिए
पिछली रात अवांछित लकड़ियों के गट्ठर
बाहर छोड़ दिए थे तुमने
सत्ता में मद में चूर
बेफ़िक्री से यूँ ही
पिछली रात सर्द थी
शीत भी पड़ी थी रात
आज कमरे में कड़वा धुँआ भर जाए
तो प्रश्न मत करना
शीत से गीली लकड़ी
नहीं जलती ठीक से
हाँ, यह तुम्हारी कुर्सी ज़रूर सूखी है
जलाकर देखो
शायद शीत का असर
कुछ कम हो
इसपर
वरना उन अवांछित गीली लकड़ियों की आग
जनतंत्र की स्याही है
 
याद रखना!