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"पुराने गुरुजनों के प्रति आभार / राबर्ट ब्लाई" के अवतरणों में अंतर
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10:00, 21 अक्टूबर 2017 के समय का अवतरण
जब हम चहलकदमी करते हैं किसी जमी हुई झील पर,
हम वहां रखते हैं अपने कदम जहां वे पहले कभी नहीं पड़े थे.
अछूती सतह पर चहलकदमी करते हैं हम. मगर होते हैं बेचैन भी.
कौन होता है वहां नीचे, सिवाय हमारे पुराने गुरुजनों के ?
पानी जो कभी संभाल नहीं पाता था इंसान का वजन
--तब हम विद्यार्थी हुआ करते थे-- अब टिकाए रहता है हमारे पैरों को,
और कोई मील भर फैला होता है हमारे सामने.
हमारे नीचे होते हैं गुरुजन, और खामोशी होती है हमारे चारों ओर.
अनुवाद : मनोज पटेल