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"संक्षिप्तकाएँ / रामनरेश पाठक" के अवतरणों में अंतर

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१.
गाँव रंग है
नगर रेखा
देह आमंत्रण है
मन स्वीकृति.

२.
सर्पमीनों के सलिल-कुंतल
बनें निर्वेद के मन व्याकरण,
प्रत्यय कहीं
उपसर्ग किंचित्.

३.
घर डर है
द्वार आशंका
आँख शील है
दृष्टि आधान.

४.
एक त्रिभुज
एक लम्ब
महासंगीत में डूब गए
तब सूरज उग आया.

५.
गाँव आलोचना है
नगर रचना.

६.
गाँव धान है
नगर पान.

७.
गाँव समुद्र है
नगर वाष्प.

८.
गाँव करुणा है
नगर श्रृंगार.

९.
गाँव साहित्य है
नगर सिद्धांत.

१०.
गाँव कुलवधू है
नगर अम्बपाली.

११.
गाँव परंपरा है
शहर प्रगति और प्रयोग.