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मनसैवेदमाप्तव्यं नेह नानाऽस्ति किंचन ।<br>
मृत्योः स मृत्युं गच्छति य इह नानेव पश्यति ॥ ११ ॥<br><br>
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अङ्गुष्ठमात्रः पुरुषो मध्य आत्मनि तिष्ठति ।<br>
ईशानं भूतभव्यस्य न ततो विजुगुप्सते ।<br>
एतद्वै तत् ॥ १२ ॥<br><br>
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अङ्गुष्ठमात्रः पुरुषो ज्योतिरिवाधूमकः ।<br>
ईशानो भूतभव्यस्य स एवाद्य स उ श्वः ।<br>
एतद्वै तत् ॥ १३ ॥<br><br>
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यथोदकं दुर्गे वृष्टं पर्वतेषु विधावति ।<br>
एवं धर्मान् पृथक् पश्यंस्तानेवानुविधावति ॥ १४ ॥<br><br>
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यथोदकं शुद्धे शुद्धमासिक्तं तादृगेव भवति ।<br>
एवं मुनेर्विजानत आत्मा भवति गौतम ॥ १५ ॥<br><br>
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ज्यों शुद्ध जल में शुद्ध जल मिल, शुद्ध जल ही बन सके,<br>
त्यों तत्व ज्ञानी ब्रह्म ज्ञान से ब्रह्म वेत्ता बन सके॥ [ १५ ]<br><br>
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इति काठकोपनिषदि द्वितीयाध्याये प्रथमा वल्ली ॥<br>
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