भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"इतिहास-यात्रा / रामनरेश पाठक" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामनरेश पाठक |अनुवादक= |संग्रह=मै...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

23:46, 25 अक्टूबर 2017 के समय का अवतरण

इतिहास काल के आर-पार
यात्रा करता है
संबोध की कौंध से
परिबोध के अंतिम फैलाव तक
अंतरालों पर
मनुष्य, घटनाएँ, संघर्ष, सिद्धांत, सभ्यताएँ
जन्म की गहराई से
उपलब्धि की ऊँचाई तक
फैलती जाती हैं और
बूँद समुद्र बन जाती है
आग का आदमी और
आदमी की आग का सम्बन्ध
इतिहास ढूँढता है
परिणति के हर पड़ाव पर और
अपनी डायरी में टाँकता है
मूलधन, ब्याज, सदाव्रत और विनियोग
और यह भी कि
काली रात
सुबह, सुनहली सुबह कैसे बन जाती है
मूक, जड़, असहाय को
जीवन कैसे मिलता है या फिर
गीले खेत या काली चट्टानों की छाती से
फसल कैसे उगती है
झरने कैसे फूटते हैं और
सच यही है कि
महाकाव्य जन्म लेते ही हैं
शक्ति को आकार मिलता ही है और
जड़ कली में, कलि फूल में, फूल ईश्वर में
बदल ही जाता है
और इतिहास
काल के आर पार
यात्रा करता है