"हिरोशिमा की बच्ची / नाज़िम हिक़मत" के अवतरणों में अंतर
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− | मगर कोई नहीं सुन पाता मेरे क़दमों की | + | मगर कोई नहीं सुन पाता मेरे क़दमों की ख़ामोश आवाज़ |
दस्तक देती हूँ मगर फिर भी रहती हूँ अनदेखी | दस्तक देती हूँ मगर फिर भी रहती हूँ अनदेखी | ||
क्योंकि मैं मर चुकी हूँ, मर चुकी हूँ मैं | क्योंकि मैं मर चुकी हूँ, मर चुकी हूँ मैं | ||
− | + | सिर्फ़ सात साल की हूँ, भले ही मृत्यु हो गई थी मेरी | |
बहुत पहले हिरोशिमा में, | बहुत पहले हिरोशिमा में, | ||
अब भी हूँ सात साल की ही, जितनी कि तब थी | अब भी हूँ सात साल की ही, जितनी कि तब थी | ||
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झुलस गए थे मेरे बाल आग की लपलपाती लपटों में | झुलस गए थे मेरे बाल आग की लपलपाती लपटों में | ||
− | + | धुँधला गईं मेरी आँखें, अन्धी हो गईं वे | |
− | मौत आई और राख में बदल गई मेरी | + | मौत आई और राख में बदल गई मेरी हड्डियाँ |
और फिर उसे बिखेर दिया था हवा ने | और फिर उसे बिखेर दिया था हवा ने | ||
कोई फल नहीं चाहिए मुझे, चावल भी नहीं | कोई फल नहीं चाहिए मुझे, चावल भी नहीं | ||
मिठाई नहीं, रोटी भी नहीं | मिठाई नहीं, रोटी भी नहीं | ||
− | अपने लिए कुछ नहीं | + | अपने लिए कुछ नहीं माँगती |
क्योंकि मैं मर चुकी हूँ, मर चुकी हूँ मैं | क्योंकि मैं मर चुकी हूँ, मर चुकी हूँ मैं | ||
बस इतना चाहती हूँ कि अमन के लिए | बस इतना चाहती हूँ कि अमन के लिए | ||
तुम लड़ो आज, आज लड़ो तुम | तुम लड़ो आज, आज लड़ो तुम | ||
− | ताकि बड़े हो सकें, | + | ताकि बड़े हो सकें, हँस-खेल सकें |
बच्चे इस दुनिया के. | बच्चे इस दुनिया के. | ||
− | '''अनुवाद : मनोज पटेल''' | + | '''अँग्रेज़ी से अनुवाद : मनोज पटेल''' |
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21:16, 4 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण
मैं आती हूँ और खड़ी होती हूँ हर दरवाज़े पर
मगर कोई नहीं सुन पाता मेरे क़दमों की ख़ामोश आवाज़
दस्तक देती हूँ मगर फिर भी रहती हूँ अनदेखी
क्योंकि मैं मर चुकी हूँ, मर चुकी हूँ मैं
सिर्फ़ सात साल की हूँ, भले ही मृत्यु हो गई थी मेरी
बहुत पहले हिरोशिमा में,
अब भी हूँ सात साल की ही, जितनी कि तब थी
मरने के बाद बड़े नहीं होते बच्चे
झुलस गए थे मेरे बाल आग की लपलपाती लपटों में
धुँधला गईं मेरी आँखें, अन्धी हो गईं वे
मौत आई और राख में बदल गई मेरी हड्डियाँ
और फिर उसे बिखेर दिया था हवा ने
कोई फल नहीं चाहिए मुझे, चावल भी नहीं
मिठाई नहीं, रोटी भी नहीं
अपने लिए कुछ नहीं माँगती
क्योंकि मैं मर चुकी हूँ, मर चुकी हूँ मैं
बस इतना चाहती हूँ कि अमन के लिए
तुम लड़ो आज, आज लड़ो तुम
ताकि बड़े हो सकें, हँस-खेल सकें
बच्चे इस दुनिया के.
अँग्रेज़ी से अनुवाद : मनोज पटेल