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"ग्यारह सितम्बर और अन्य कविताएँ / कुमार मुकुल" के अवतरणों में अंतर

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सुबह
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* [[सुबह / कुमार मुकुल]]
 
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चांदनी की
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रहस्यमयी परतों को दरकाती
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सुबह हो रही है
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जगो
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और पांवों में पहन लो
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धूल मिट्टी ओस
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और दौड़ो
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देखो-स्मृतियों में
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कोई हरसिंगार अब भी हरा होगा
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पूरी रात जग कर थक गया होगा
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संभालो उसे-उसकी गंध को संभालो
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जगो
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कि कुत्ते सो रहे हैं अभी
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और पक्षी खोल रहे हैं
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दिशाओं के द्वार
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जगो
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और बच्चों के स्वप्नों में
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प्रवेश कर जाओ।
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01:58, 24 जून 2008 का अवतरण