"रुबाईयाँ / फ़िराक़ गोरखपुरी" के अवतरणों में अंतर
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ठंडक, ख्नुशबू, चमक, लताफ़त, नरमी<br> | ठंडक, ख्नुशबू, चमक, लताफ़त, नरमी<br> | ||
गुलज़ार ए इरम का पहला तड़का है कि आँख <br> | गुलज़ार ए इरम का पहला तड़का है कि आँख <br> | ||
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+ | लहरों में खिला कंवल नहाए जैसे<br> | ||
+ | दोशीज़: ए सुबह गुनगुनाए जैसे<br> | ||
+ | ये रूप, ये लोच, ये तरन्नुम, ये निखार <br> | ||
+ | बच्चा सोते में मुसकुराए जैसे <br><br> | ||
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+ | दोशीज़-ए-बहार मुस्कुराए जैसे<br> | ||
+ | मौज ए तसनीम गुनगुनाए जैसे<br> | ||
+ | ये शान ए सुबकरवी, ये ख़ुशबू-ए-बदन<br> | ||
+ | बल खाई हुई नसीम गाए जैसे<br><br> | ||
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+ | ग़ुनचे को नसीम गुदगुदाए जैसे<br> | ||
+ | मुतरिब कोई साज़ छेड़ जाए जैसे<br> | ||
+ | यूँ फूट रही है मुस्कुराहट की किरन <br> | ||
+ | मन्दिर में चिराग़ झिलमिलाए जैसे<br><br> | ||
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+ | मंडलाता है पलक के नीचे भौंवरा<br> | ||
+ | गुलगूँ रुख़सार की बलाएँ लेता<br> | ||
+ | रह रह के लपक जाता है कानों की तरफ़ <br> | ||
+ | गोया कोई राज़ ए दिल है इसको कहना<br><br> | ||
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+ | माँ और बहन भी और चहेती बेटी<br> | ||
+ | घर की रानी भी और जीवन साथी<br> | ||
+ | फिर भी वो कामनी सरासर देवी<br> | ||
+ | और सेज पे बेसवा वो रस की पुतली<br><br> | ||
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+ | अमृत में धुली हुई फ़िज़ा ए सहरी<br> | ||
+ | जैसे शफ़्फ़ाफ़ नर्म शीशे में परी<br> | ||
+ | ये नर्म क़बा में लेहलहाता हुआ रूप <br> | ||
+ | जैसे हो सबा की गोद फूलोँ से भरी<br><br> | ||
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+ | हम्माम में ज़ेर ए आब जिस्म ए जानाँ <br> | ||
+ | जगमग जगमग ये रंग-ओ-बू का तूफ़ाँ <br> | ||
+ | मलती हैं सहेलियाँ जो मेंहदी रचे पांव <br> | ||
+ | तलवों की गुदगुदी है चहरे से अयाँ <br><br> | ||
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+ | चिलमन में मिज़: की गुनगुनाती आँखें <br> | ||
+ | चोथी की दुल्हन सी लजाती आँखें<br> | ||
+ | जोबन रस की सुधा लुटाती हर आन <br> | ||
+ | पलकों की ओट मुस्कुराती आँखें<br><br> | ||
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+ | तारों को भी लोरियाँ सुनाती हुई आँख <br> | ||
+ | जादू शब ए तार का जगाती हुई आँख <br> | ||
+ | जब ताज़गी सांस ले रही हो दम ए सुब: <br> | ||
+ | दोशीज़: कंवल सी मुस्कुराती हुई आँख <br><br> | ||
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+ | भूली हुई ज़िन्दगी की दुनिया है कि आँख <br> | ||
+ | दोशीज़: बहार का फ़साना है कि आँख <br> | ||
+ | ठंडक, ख्नुशबू, चमक, लताफ़त, नरमी<br> | ||
+ | गुलज़ार ए इरम का पहला तड़का है कि आँख <br><br> |
19:45, 24 जून 2008 का अवतरण
1. लहरों में खिला कंवल नहाए जैसे
दोशीज़: ए सुबह गुनगुनाए जैसे
ये रूप, ये लोच, ये तरन्नुम, ये निखार
बच्चा सोते में मुसकुराए जैसे
2. दोशीज़: ए बहार मुसकुराए जैसे
मौज ए तसनीम गुनगुनाए जैसे
ये शान ए सुबकरवी, ये ख्नुशबू ए बदन
बल खाई हुई नसीम गाए जैसे
3. ग़ुनचे को नसीम गुदगुदाए जैसे
मुतरिब कोई साज़ छेड़जाए जैसे
यूँ फूट रही है मुस्कुराहट की किरन
मन्दिर में चिराग़ झिलमिलाए जैसे
4. मंडलाता है पलक के नीचे भौंवरा
गुलगूँ रुख्नसार की बलाऎं लेता
रह रह के लपक जाता है कानों की तरफ़
गोया कोई राज़ ए दिल है इसको कहना
5. माँ और बहन भी और चहीती बेटी
घर की रानी भी और जीवन साथी
फिर भी वो कामनी सरासर देवी
और सेज पे बेसवा वो रस की पुतली
6. अमृत में धुली हुई फ़िज़ा ए सहरी
जैसे शफ़्फ़ाफ़ नर्म शीशे में परी
ये नर्म क़बा में लेहलहाता हुआ रूप
जैसे हो सबा की गोद फूलोँ से भरी
7. हम्माम में ज़ेर ए आब जिसम ए जानाँ
जगमग जगमग ये रंग ओ बू का तूफ़ाँ
मलती हैं सहेलियाँ जो मेंहदी रचे पांव
तलवों की गुदगुदी है चहरे से अयाँ
8. चिलमन में मिज़: की गुनगुनाती आँखें
चोथी की दुल्हन सी लजाती आँखें
जोबन रस की सुधा लुटाती हर आन
पलकोँ की ओट मुस्कुराती आँखें
9. तारों को भी लोरियाँ सुनाती हुई आँख
जादू शब ए तार का जगाती हुई आँख
जब ताज़गी सांस ले रही हो दम ए सुब:
दोशीज़: कंवल सी मुस्कुराती हुई आँख
10. भूली हुई ज़िन्दगी की दुनिया है कि आँख
दोशीज़: बहार का फ़साना है कि आँख
ठंडक, ख्नुशबू, चमक, लताफ़त, नरमी
गुलज़ार ए इरम का पहला तड़का है कि आँख
लहरों में खिला कंवल नहाए जैसे
दोशीज़: ए सुबह गुनगुनाए जैसे
ये रूप, ये लोच, ये तरन्नुम, ये निखार
बच्चा सोते में मुसकुराए जैसे
दोशीज़-ए-बहार मुस्कुराए जैसे
मौज ए तसनीम गुनगुनाए जैसे
ये शान ए सुबकरवी, ये ख़ुशबू-ए-बदन
बल खाई हुई नसीम गाए जैसे
ग़ुनचे को नसीम गुदगुदाए जैसे
मुतरिब कोई साज़ छेड़ जाए जैसे
यूँ फूट रही है मुस्कुराहट की किरन
मन्दिर में चिराग़ झिलमिलाए जैसे
मंडलाता है पलक के नीचे भौंवरा
गुलगूँ रुख़सार की बलाएँ लेता
रह रह के लपक जाता है कानों की तरफ़
गोया कोई राज़ ए दिल है इसको कहना
माँ और बहन भी और चहेती बेटी
घर की रानी भी और जीवन साथी
फिर भी वो कामनी सरासर देवी
और सेज पे बेसवा वो रस की पुतली
अमृत में धुली हुई फ़िज़ा ए सहरी
जैसे शफ़्फ़ाफ़ नर्म शीशे में परी
ये नर्म क़बा में लेहलहाता हुआ रूप
जैसे हो सबा की गोद फूलोँ से भरी
हम्माम में ज़ेर ए आब जिस्म ए जानाँ
जगमग जगमग ये रंग-ओ-बू का तूफ़ाँ
मलती हैं सहेलियाँ जो मेंहदी रचे पांव
तलवों की गुदगुदी है चहरे से अयाँ
चिलमन में मिज़: की गुनगुनाती आँखें
चोथी की दुल्हन सी लजाती आँखें
जोबन रस की सुधा लुटाती हर आन
पलकों की ओट मुस्कुराती आँखें
तारों को भी लोरियाँ सुनाती हुई आँख
जादू शब ए तार का जगाती हुई आँख
जब ताज़गी सांस ले रही हो दम ए सुब:
दोशीज़: कंवल सी मुस्कुराती हुई आँख
भूली हुई ज़िन्दगी की दुनिया है कि आँख
दोशीज़: बहार का फ़साना है कि आँख
ठंडक, ख्नुशबू, चमक, लताफ़त, नरमी
गुलज़ार ए इरम का पहला तड़का है कि आँख