भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मेरे बचपन की निशानी है अभी तक गाँव में / राजीव भरोल 'राज़'" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजीव भरोल }} Category:ग़ज़ल <poem> मेरे ब...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

19:45, 21 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण

मेरे बचपन की निशानी है अभी तक गाँव में
इक पुराना पेड़ बाकी है अभी तक गाँव में

इसके एहसासों में अब भी हैं पुरानी खुशबुएँ
आँगन आँगन रातरानी है अभी तक गाँव में

शहर में मेरा बड़ा सा घर है, सब सुविधाएँ हैं
फिर भी अम्मा है कि रहती है अभी तक गाँव में

गाँव के जीवन में थोड़ी मुश्किलें भी हैं तो क्या
रंग ख़ाबों का सुनहरी है अभी तक गाँव में

है यहाँ हासिल सभी को अपने हिस्से की खुशी
सब घरों तक धूप आती है अभी तक गाँव में

दर ब दर हूँ मैं मगर बेघर नहीं हूँ दोस्तो
मेरे पुरखों की हवेली है अभी तक गाँव में