"सुगना मुण्डा की बेटी-3 / अनुज लुगुन" के अवतरणों में अंतर
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साल के लम्बे-लम्बे पेड़ों को | साल के लम्बे-लम्बे पेड़ों को | ||
अपने में समेटने की कोशिश करती | अपने में समेटने की कोशिश करती | ||
− | + | बन्दई की अमावस्या | |
− | गहन | + | गहन अन्धेरा और दीपकों का उत्सव भी |
− | + | ग़ुलामी की साज़िश और मुक्ति की तैयारी भी, | |
+ | |||
और पास ही एक छोटी झोपड़ी से | और पास ही एक छोटी झोपड़ी से | ||
प्रतिपक्ष में खड़े दीये की मद्धिम रोशनी | प्रतिपक्ष में खड़े दीये की मद्धिम रोशनी | ||
साल के पेड़ों की पहचान बचा रही है | साल के पेड़ों की पहचान बचा रही है | ||
साथ ही उससे उभर रही है | साथ ही उससे उभर रही है | ||
− | झोपड़ी के | + | झोपड़ी के अन्दर एक बूढ़े की पहचान — |
जिसके गले में एक गमछी टँगी है, | जिसके गले में एक गमछी टँगी है, | ||
− | घुटनों तक | + | घुटनों तक सफ़ेद धोती लिपटी है |
उसके हाथ में बाँस की चमकती हुई छड़ी है | उसके हाथ में बाँस की चमकती हुई छड़ी है | ||
वह डोडे वैद्य है, | वह डोडे वैद्य है, | ||
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वहाँ अन्य सात जनों की पहचान बना रही है | वहाँ अन्य सात जनों की पहचान बना रही है | ||
‘तीन युवक और चार युवतियाँ’ | ‘तीन युवक और चार युवतियाँ’ | ||
− | और उन तक मद्धिम | + | और उन तक मद्धिम आवाज़ में |
− | गाँव के किसी कोने से | + | गाँव के किसी कोने से बन्दई का गीत पहुँचता है |
+ | |||
‘लियो रे हिर्रे, लियो रे हिर...रे | ‘लियो रे हिर्रे, लियो रे हिर...रे | ||
हमारे खेत, हमारी खेती के साथी | हमारे खेत, हमारी खेती के साथी | ||
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लियो रे हिर्रे, लियो रे हिर...रे | लियो रे हिर्रे, लियो रे हिर...रे | ||
हिसिंगा से परे, डाह से परे’ | हिसिंगा से परे, डाह से परे’ | ||
− | डोडे वैद्य के सामने गोबर लिपी | + | |
+ | डोडे वैद्य के सामने गोबर लिपी ज़मीन पर | ||
कुछ दोने हैं, दोनों में अरवा चावल हैं | कुछ दोने हैं, दोनों में अरवा चावल हैं | ||
− | धुअन है, | + | धुअन है, हण्डिया है |
− | वह | + | वह सम्वाद की मुद्रा में कहता है — |
− | ‘गुड़ी की | + | ‘गुड़ी की अन्तिम परीक्षा का दिन है यह |
फिर से आज कहूँगा कि | फिर से आज कहूँगा कि | ||
यह साँप पकड़ने या जकड़ने का | यह साँप पकड़ने या जकड़ने का | ||
जादू-टोना नहीं है | जादू-टोना नहीं है | ||
और न ही हम ऐसे ढोंगी विद्या के समर्थक हैं | और न ही हम ऐसे ढोंगी विद्या के समर्थक हैं | ||
− | यह आयुर्वेद का | + | यह आयुर्वेद का सम्पूर्ण ज्ञान |
− | + | गन्ध और गीतों का समुच्चय है | |
− | + | ||
मूल ‘होड़ो-पैथी’ है यह | मूल ‘होड़ो-पैथी’ है यह | ||
− | जीवों के बाह्य और | + | जीवों के बाह्य और आन्तरिक |
विशेषताओं और विसंगतियों का ज्ञान | विशेषताओं और विसंगतियों का ज्ञान | ||
− | और इसके सूत्राधार होते हैं | + | और इसके सूत्राधार होते हैं मन्तर, |
− | ‘‘ये | + | |
− | केवल ध्वनि | + | ‘‘ये मन्तर केवल शब्द नहीं हैं |
+ | केवल ध्वनि मात्र नहीं हैं | ||
और न ही यह मेरी रचना है | और न ही यह मेरी रचना है | ||
जिसे मैं अपनी अमरता के लिए | जिसे मैं अपनी अमरता के लिए | ||
− | तुम्हारी स्मृतियों का | + | तुम्हारी स्मृतियों का स्तम्भ खड़ा कर रहा हूँ |
− | यह किसी ओझा का झूठ या | + | यह किसी ओझा का झूठ या अन्धविश्वास नहीं है |
यह उन सबका सार है | यह उन सबका सार है | ||
निचोड़ है, रस है | निचोड़ है, रस है | ||
जो हमारे आसपास के जीवन में | जो हमारे आसपास के जीवन में | ||
− | दृश्य-अदृश्य, बोले-अबोले | + | दृश्य-अदृश्य, बोले-अबोले मौज़ूद है, |
+ | |||
इस धरती में जीवन के तन्तु | इस धरती में जीवन के तन्तु | ||
एक-दूसरे प्राणियों से ही बुने हैं | एक-दूसरे प्राणियों से ही बुने हैं | ||
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प्रकृति में कोई भी किसी के बिना अधूरा है | प्रकृति में कोई भी किसी के बिना अधूरा है | ||
उसकी पहचान अधूरी है | उसकी पहचान अधूरी है | ||
− | + | सम्पूर्ण जीवन में हम अपने सहजीवियों से | |
− | प्रत्यक्ष | + | प्रत्यक्ष सम्वाद नहीं कर पाते हैं |
− | यह | + | यह मन्तर उनसे सम्वाद का माध्यम है |
− | यह | + | यह मन्तर है, अलिखित, अ-रूढ़ और स्व-अभिव्यक्ति’’ |
− | + | ||
+ | जोना (शिष्या) — | ||
‘‘एक तरफ हम यहाँ | ‘‘एक तरफ हम यहाँ | ||
जीवन बचाने के लिए परीक्षा में उतरे हैं | जीवन बचाने के लिए परीक्षा में उतरे हैं | ||
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अपनी क्षमता बढ़ाने के लिए | अपनी क्षमता बढ़ाने के लिए | ||
कहा जाता है | कहा जाता है | ||
− | आज चुड़ैलें नाचती हैं | + | आज चुड़ैलें नाचती हैं अन्धेरी रात में |
डायन-सभा होती है | डायन-सभा होती है | ||
जो अपनी देह में जलते हुए दिये को लेकर नृत्य करती हैं | जो अपनी देह में जलते हुए दिये को लेकर नृत्य करती हैं | ||
− | + | आदमख़ोर कहीं अपने दाँत तेज़ कर रहे होंगे’’ | |
− | + | ||
− | सेः को (शिष्य) | + | सेः को (शिष्य) — |
− | ‘‘अगर हमारे | + | ‘‘अगर हमारे मन्तर की शक्ति है तो |
− | उनके | + | उनके मन्तर की भी शक्ति होगी ही |
तो क्या यह शक्तियों की टकराहट होगी...? | तो क्या यह शक्तियों की टकराहट होगी...? | ||
− | क्या यह | + | क्या यह द्वन्द्व है |
अपनी-अपनी शक्ति स्थापना का...?’’ | अपनी-अपनी शक्ति स्थापना का...?’’ | ||
− | डोडे | + | |
− | ‘‘एक | + | डोडे वैद्य — |
− | जो जीवन बचाने के लिए | + | ‘‘एक तरफ़ हम हैं |
− | और दूसरी | + | जो जीवन बचाने के लिए ख़ुद को समर्पित कर रहे हैं |
− | + | और दूसरी तरफ़ अमानवीयता की भी तैयारी है | |
+ | ग़ौर करने की बात है कि | ||
हर शक्ति मानवीयता के नाम पर ही उभरती है, | हर शक्ति मानवीयता के नाम पर ही उभरती है, | ||
+ | |||
हमारी तैयारी शक्ति स्थापित करने की नहीं है | हमारी तैयारी शक्ति स्थापित करने की नहीं है | ||
बल्कि अमानवीय शक्तियों को | बल्कि अमानवीय शक्तियों को | ||
जीवन के केन्द्र में आने से रोकने की है’’ | जीवन के केन्द्र में आने से रोकने की है’’ | ||
− | जितनी (शिष्या) | + | |
− | ‘‘तो फिर यह | + | जितनी (शिष्या) — |
+ | ‘‘तो फिर यह द्वन्द्व है, लड़ाई है | ||
लेकिन हमें तो सबकी सेवा के लिए तत्पर होना है | लेकिन हमें तो सबकी सेवा के लिए तत्पर होना है | ||
− | हमारे लिए क्या | + | हमारे लिए क्या शत्रु, क्या दोस्त |
− | सब | + | सब मरीज़ हैं, दुखी जन हैं?’’ |
− | डोडे | + | |
+ | डोडे वैद्य — | ||
‘‘हाँ, हमें सबकी सेवा करनी है | ‘‘हाँ, हमें सबकी सेवा करनी है | ||
हम वैद्य होंगे, रोग निवारक होंगे, | हम वैद्य होंगे, रोग निवारक होंगे, | ||
− | हमारा कोई | + | हमारा कोई शत्रु नहीं है |
− | हमारा | + | हमारा शत्रु सिर्फ़ रोग है, बीमारी है |
और यह रोग विचार भी है, सोच भी है | और यह रोग विचार भी है, सोच भी है | ||
− | एक व्यवस्था भी रोग | + | एक व्यवस्था भी रोग होती है |
हमें सबसे पहले रोग की पहचान करनी होगी’’ | हमें सबसे पहले रोग की पहचान करनी होगी’’ | ||
− | बिरसी (शिष्या) | + | |
+ | बिरसी (शिष्या) — | ||
‘‘रोगी कौन है | ‘‘रोगी कौन है | ||
रोग कैसे होता है | रोग कैसे होता है | ||
− | + | चुड़ैलें रोग फैलाती हैं | |
− | या | + | या डायनें रोग फैलाती हैं |
− | + | हमें इन बातों पर विश्वास नहीं होता है | |
− | हमें इन बातों | + | |
यह ओझाओं का ढोंग है | यह ओझाओं का ढोंग है | ||
अपने लिए मुर्गा और बकरा जुगाड़ने का धन्धा है | अपने लिए मुर्गा और बकरा जुगाड़ने का धन्धा है | ||
− | इनके | + | इनके मन्तर और झाड़-फूँक कष्टदायी होते हैं’’ |
− | डोडे वैद्य | + | |
+ | डोडे वैद्य — | ||
‘‘हाँ, बिरसी! | ‘‘हाँ, बिरसी! | ||
− | + | चुड़ैलें और डायनें लोगों की कल्पना हैं | |
यह भी सत्ता के वर्चस्व का साधन है | यह भी सत्ता के वर्चस्व का साधन है | ||
उत्पीड़न का कारक | उत्पीड़न का कारक | ||
− | + | सम्पत्ति लालसा का प्रतिबिम्ब | |
यह संकेत है | यह संकेत है | ||
आदिवासी दुनिया में | आदिवासी दुनिया में | ||
सत्ताओं के उदय का | सत्ताओं के उदय का | ||
− | पुरखों के | + | पुरखों के गणतन्त्र के ख़िलाफ़ प्रभुता का, |
+ | |||
यह संकेत है | यह संकेत है | ||
− | + | अमानवीय शक्तियों के गठबन्धन का, | |
चानर-बानर के शुक्राणु | चानर-बानर के शुक्राणु | ||
उलट्बग्घा के शुक्राणु यहीं से जन्म लेते हैं | उलट्बग्घा के शुक्राणु यहीं से जन्म लेते हैं | ||
यहीं अभिक्रिया होती है आदमी और बाघ की | यहीं अभिक्रिया होती है आदमी और बाघ की | ||
− | जो सबसे | + | जो सबसे ज़्यादा भयावह और अप्राकृतिक होता है’’ |
− | + | ||
+ | बिरसी — | ||
‘‘हाँ, मैंने सपने में देखा था | ‘‘हाँ, मैंने सपने में देखा था | ||
रीडा आबा मुझे उसी तरह के बाघ की बात बता रहे थे | रीडा आबा मुझे उसी तरह के बाघ की बात बता रहे थे | ||
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उन्होंने ही कहा था | उन्होंने ही कहा था | ||
आदमी ही बाघ बनते हैं’’ | आदमी ही बाघ बनते हैं’’ | ||
− | डोडे | + | |
+ | डोडे वैद्य — | ||
‘‘हाँ, बिरसी | ‘‘हाँ, बिरसी | ||
प्राकृतिक रोग का इलाज सहज है | प्राकृतिक रोग का इलाज सहज है | ||
मनुष्य निर्मित रोग का इलाज कठिन है | मनुष्य निर्मित रोग का इलाज कठिन है | ||
उसका रोग | उसका रोग | ||
− | उसकी व्यवस्था के रूप में | + | उसकी व्यवस्था के रूप में प्रतिबिम्बित होता है, |
हमारे अन्दर रोग | हमारे अन्दर रोग | ||
− | |||
केवल प्राकृतिक नहीं है | केवल प्राकृतिक नहीं है | ||
− | कई बार हमारे | + | कई बार हमारे मुण्डाओं, मानकियों और |
पहान जैसे पदधारियों ने भी | पहान जैसे पदधारियों ने भी | ||
अप्राकृत बाघों के साथ अभिक्रिया कर | अप्राकृत बाघों के साथ अभिक्रिया कर | ||
− | मदरा मुण्डा और हीरा राजा के | + | मदरा मुण्डा और हीरा राजा के गणतन्त्र के विरुद्ध आचरण किया है |
− | और एक ही गण के | + | और एक ही गण के अन्दर |
एक मुण्डा के यहाँ अलग व्यवस्था दिख जाती है | एक मुण्डा के यहाँ अलग व्यवस्था दिख जाती है | ||
दूसरे मुण्डा के यहाँ अलग | दूसरे मुण्डा के यहाँ अलग | ||
− | हमने उसे एक रोग के रूप में | + | हमने उसे एक रोग के रूप में चिह्नित किया है’’ |
− | + | ||
+ | जोना — | ||
‘‘रिसा मुण्डा और मदरा मुण्डा के | ‘‘रिसा मुण्डा और मदरा मुण्डा के | ||
− | + | गणतन्त्र के विरुद्ध | |
हमारे ही परवर्ती कुछ मुण्डाओं ने भी आचरण किया है | हमारे ही परवर्ती कुछ मुण्डाओं ने भी आचरण किया है | ||
− | यानी, | + | यानी, गणतन्त्र के विरुद्ध आचरण भी बाघपन है...? |
बीमारी है, रोग है?’’ | बीमारी है, रोग है?’’ | ||
− | + | ||
+ | डोडे — | ||
‘‘हाँ, लेकिन रोग या रोगी की पहचान | ‘‘हाँ, लेकिन रोग या रोगी की पहचान | ||
केवल उसके बाहरी लक्षण से ही | केवल उसके बाहरी लक्षण से ही | ||
− | + | सम्भव नहीं है | |
− | + | गणतन्त्र यदि एक आवरण मात्र है | |
− | और उसके | + | और उसके अन्दर उसकी अस्थि-मज्जाओं का अभाव है |
− | तो वह धोखा है ढोंग है | + | तो वह धोखा है, ढोंग है |
− | हमारे पुरखों ने | + | हमारे पुरखों ने अपनी अस्थि-मज्जाओं से उसकी संरचना की है |
लेकिन हमारे ही मुण्डाओं ने | लेकिन हमारे ही मुण्डाओं ने | ||
हमारे ही प्रतिनिधियों ने | हमारे ही प्रतिनिधियों ने | ||
उसको खोखला कर | उसको खोखला कर | ||
− | आवरण | + | आवरण मात्र रहने दिया है, |
− | हमारे | + | |
− | गीत ही | + | हमारे गणतन्त्र के आधार-गीत हैं |
+ | गीत ही मन्तर है | ||
रोग निवारक प्रमुख औषधि हैं | रोग निवारक प्रमुख औषधि हैं | ||
− | गीतों का | + | गीतों का ह्रास गणतन्त्र का ह्रास है |
− | गीत रहित | + | गीत रहित गणतन्त्र प्रभुओं की व्यवस्था है |
− | प्रभुताओं के | + | प्रभुताओं के ख़िलाफ़ |
− | मैं तुम्हें | + | मैं तुम्हें मन्तर दूँगा, गीत सौंपूँगा |
वही होगा रोगों से मुक्ति का आधार, | वही होगा रोगों से मुक्ति का आधार, | ||
− | + | ||
− | यह गीत, यह | + | यह गीत, यह मन्तर |
रोग के कारण से | रोग के कारण से | ||
− | + | सम्वाद का एक माध्यम है | |
ठीक वैसे ही जैसे | ठीक वैसे ही जैसे | ||
− | पेड़ से गिरे | + | पेड़ से गिरे मरीज़ को |
जड़ी-बूटी देने से पहले | जड़ी-बूटी देने से पहले | ||
− | उस पेड़ से | + | उस पेड़ से सम्वाद स्थापित करते हैं कि |
वह हमें क्षमा करे हमारी अमर्यादा के लिए | वह हमें क्षमा करे हमारी अमर्यादा के लिए | ||
− | यह | + | |
+ | यह मन्तर गीत है, स्वछन्द है | ||
दृश्य-अदृश्य, बोले-अबोले प्रकृति का | दृश्य-अदृश्य, बोले-अबोले प्रकृति का | ||
− | + | सम्वाद है अपने सभी सहजीवियों से’’ | |
+ | |||
सहमति में सात जनों के सिर | सहमति में सात जनों के सिर | ||
अपनी-अपनी स्वाभाविक मुद्राओं में हिले | अपनी-अपनी स्वाभाविक मुद्राओं में हिले | ||
− | वे अपनी मुद्राओं को स्वर देते | + | वे अपनी मुद्राओं को स्वर देते हैं — |
− | ‘हाँ, हमें | + | ‘हाँ, हमें सम्वाद के |
सभी तरीकों से अवगत होना है | सभी तरीकों से अवगत होना है | ||
− | + | सम्वाद के बिना | |
गीतों के बिना | गीतों के बिना | ||
हम कोई ठोस व्यवस्था नहीं बना सकते’ | हम कोई ठोस व्यवस्था नहीं बना सकते’ | ||
एक गहन शांति के बाद | एक गहन शांति के बाद | ||
− | डोडे वैद्य ने फिर | + | डोडे वैद्य ने फिर कहा — |
‘‘सुनो! | ‘‘सुनो! | ||
− | आज | + | आज बन्दई की अमावस्या है — |
− | + | ‘ग़ुलामी की साज़िश | |
और मुक्ति की योजना भी है’ | और मुक्ति की योजना भी है’ | ||
आज का त्योहार | आज का त्योहार | ||
पंक्ति 217: | पंक्ति 234: | ||
मवेशियों के लिए है | मवेशियों के लिए है | ||
यह उनकी सेवा का अवसर है | यह उनकी सेवा का अवसर है | ||
− | उनसे | + | उनसे सम्वाद को प्रगाढ़ करना है’’ |
+ | |||
सात जनों में से | सात जनों में से | ||
− | एक की प्रश्नवाचक मुद्रा | + | एक की प्रश्नवाचक मुद्रा उभरी — |
− | ‘‘यह | + | ‘‘यह सम्वाद |
कैसे प्रगाढ़ होता है?’’ | कैसे प्रगाढ़ होता है?’’ | ||
− | + | ||
− | + | डोडे — | |
− | + | ‘‘सम्वाद की प्रक्रिया होती है | |
− | उस प्रक्रिया से | + | उस प्रक्रिया से गुज़रे बिना |
हमें अजनबीपन का बोध होता है | हमें अजनबीपन का बोध होता है | ||
+ | |||
हमने अपने सहजीवियों के | हमने अपने सहजीवियों के | ||
सम्मान में उपवास किया | सम्मान में उपवास किया | ||
पंक्ति 232: | पंक्ति 251: | ||
समझ सकें हमारी भावना | समझ सकें हमारी भावना | ||
और उनकी भावना में | और उनकी भावना में | ||
− | उतर | + | उतर आए अस्पर्श नमी |
हमने उन्हें नहलाया | हमने उन्हें नहलाया | ||
कुजरी तेल से तेलाया | कुजरी तेल से तेलाया | ||
पंक्ति 238: | पंक्ति 257: | ||
उन्हें धन्यवाद कहा कि | उन्हें धन्यवाद कहा कि | ||
उन्होंने हर बार की भाँति | उन्होंने हर बार की भाँति | ||
− | इस बार भी हमारी खेती | + | इस बार भी हमारी खेती सम्पन्न की |
वे हमारे बच्चों की आँखों की हँसी हैं | वे हमारे बच्चों की आँखों की हँसी हैं | ||
− | हमारे पुरखों की | + | हमारे पुरखों की शान्ति के कारक |
− | हमने उन्हें | + | हमने उन्हें हण्डिया, सिन्दूर अर्पित किया |
हमने उनके पुरखों को स्मरण किया कि | हमने उनके पुरखों को स्मरण किया कि | ||
उन्होंने ही हमें घने जंगलों के बीच | उन्होंने ही हमें घने जंगलों के बीच | ||
जीवन का सहारा दिया | जीवन का सहारा दिया | ||
वे हमारे गणचिह्न हैं, हमारे रक्षक, | वे हमारे गणचिह्न हैं, हमारे रक्षक, | ||
− | हमने स्मरण किया | + | हमने स्मरण किया ‘टूण्टा साईल काचा बियर’ को |
कि उन्होंने आदिम दिनों में | कि उन्होंने आदिम दिनों में | ||
− | हमारे जीवन का | + | हमारे जीवन का जोख़िम भरा रास्ता साफ़ किया |
+ | |||
फिर पूरे गाँव के सहजीवियों को | फिर पूरे गाँव के सहजीवियों को | ||
अखड़ा में एकत्रित किया | अखड़ा में एकत्रित किया | ||
− | और उनके साथ | + | और उनके साथ मान्दर, नगाड़े, गीत साझा किए — |
‘हिर रे, हिर रे, तोतो नोनो | ‘हिर रे, हिर रे, तोतो नोनो | ||
हिर रे, हिर रे, तोतो नोनो | हिर रे, हिर रे, तोतो नोनो | ||
पंक्ति 257: | पंक्ति 277: | ||
आज तुम्हारी सेवा करेंगे | आज तुम्हारी सेवा करेंगे | ||
तुम्हारी इच्छाशक्ति से ही | तुम्हारी इच्छाशक्ति से ही | ||
− | + | तुम्हारी लगन से ही | |
इस जीवन को हमने सँवारा | इस जीवन को हमने सँवारा | ||
इस देश को हमने सोना बनाया | इस देश को हमने सोना बनाया | ||
− | |||
हिर रे, हिर रे, घुर रे, हुर्र रे | हिर रे, हिर रे, घुर रे, हुर्र रे | ||
छगरी रे, गारू रे, काड़ा रे’ | छगरी रे, गारू रे, काड़ा रे’ | ||
− | (सभी शिष्य सामूहिक स्वर देते | + | |
− | फिर और एक मुद्रा प्रश्नवाचक | + | (सभी शिष्य सामूहिक स्वर देते हैं) |
− | ‘‘गीत क्यों | + | |
− | + | फिर और एक मुद्रा प्रश्नवाचक हुई — | |
− | + | ‘‘गीत क्यों ज़रूरी होते हैं?’’ | |
− | + | ||
− | + | बिरसी — | |
+ | ‘‘सम्वाद और सम्मान के लिए’’ | ||
+ | |||
+ | डोडे — | ||
+ | ‘‘सम्वाद और सम्मान | ||
सहजीविता के लिए अनिवार्य शर्त है | सहजीविता के लिए अनिवार्य शर्त है | ||
जंगलों से, नदियों से | जंगलों से, नदियों से | ||
पंक्ति 275: | पंक्ति 298: | ||
दृश्य-अदृश्य, बोले-अबोले प्रकृति से | दृश्य-अदृश्य, बोले-अबोले प्रकृति से | ||
विश्व कल्याण के लिए, | विश्व कल्याण के लिए, | ||
− | + | ||
+ | सम्पूर्ण जीवन की लय और | ||
श्रम के लय की एका से ही | श्रम के लय की एका से ही | ||
− | सहजीविता | + | सहजीविता सम्भव होती है |
श्रम का शोषण | श्रम का शोषण | ||
इस लय को तोड़ता है | इस लय को तोड़ता है | ||
इसी लय को गूँथते हैं गीत | इसी लय को गूँथते हैं गीत | ||
− | गीत ही हमारे | + | गीत ही हमारे मन्तर हैं |
यह कोई आदेश नहीं है | यह कोई आदेश नहीं है | ||
− | कोई | + | कोई फ़तवा नहीं है |
− | + | स्त्री-पुरुष, बच्चे-बूढ़े | |
इसके सब समान अधिकारी हैं | इसके सब समान अधिकारी हैं | ||
वंचित जनों का प्राण है यह’’ | वंचित जनों का प्राण है यह’’ | ||
− | + | ||
+ | जितनी — | ||
‘‘गीत हमारे रोग निवारण की | ‘‘गीत हमारे रोग निवारण की | ||
औषधि है | औषधि है | ||
इस औषधि की जड़ अखड़ा है | इस औषधि की जड़ अखड़ा है | ||
अवसाद की जड़ी, अकेलेपन की बूटी...?’’ | अवसाद की जड़ी, अकेलेपन की बूटी...?’’ | ||
− | + | ||
− | + | डोडे — | |
‘‘हाँ, यह रोग निवारण की औषधि है | ‘‘हाँ, यह रोग निवारण की औषधि है | ||
इस औषधि की जड़ केवल अखड़ा नहीं रही है | इस औषधि की जड़ केवल अखड़ा नहीं रही है | ||
− | हमारा | + | हमारा सम्पूर्ण गणतन्त्र इसकी जड़ी है |
गितिः ओड़ाः, धुमकुड़िया, घोटुल | गितिः ओड़ाः, धुमकुड़िया, घोटुल | ||
पड़हा, पंचायत, सरना, मदाईत, | पड़हा, पंचायत, सरना, मदाईत, | ||
पंक्ति 303: | पंक्ति 328: | ||
श्रम के शोषण का प्रतिपक्ष | श्रम के शोषण का प्रतिपक्ष | ||
और सत्ताओं के लिए कड़वा घूँट | और सत्ताओं के लिए कड़वा घूँट | ||
− | + | जब-जब गीत टूटे हैं | |
सत्ताओं के विषाणु पनपे हैं।’’ | सत्ताओं के विषाणु पनपे हैं।’’ | ||
− | रुसू (शिष्य) | + | |
+ | रुसू (शिष्य) — | ||
‘यह हमारी प्रकृति में ही मौजूद है | ‘यह हमारी प्रकृति में ही मौजूद है | ||
− | उसी में हैं इसके | + | उसी में हैं इसके तन्तु’ |
− | + | ||
+ | डोडे — | ||
‘‘हाँ, मूल तो प्रकृति ही है | ‘‘हाँ, मूल तो प्रकृति ही है | ||
− | वर्तमान | + | वर्तमान दम्भी विज्ञान का उत्स भी |
सभी उत्पादित वस्तुओं का सोता भी, | सभी उत्पादित वस्तुओं का सोता भी, | ||
आह...लेकिन उसी प्रकृति का आज इतना अपमान है! | आह...लेकिन उसी प्रकृति का आज इतना अपमान है! | ||
पंक्ति 319: | पंक्ति 346: | ||
उसकी रक्षा हमारा कर्त्तव्य | उसकी रक्षा हमारा कर्त्तव्य | ||
यही है आदिवासियत का आधार | यही है आदिवासियत का आधार | ||
− | और यही आधार है | + | और यही आधार है सम्पूर्ण सृष्टि के जीवन का। |
</poem> | </poem> |
17:23, 14 दिसम्बर 2017 के समय का अवतरण
सुगना मुण्डा की बेटी
साल के लम्बे-लम्बे पेड़ों को
अपने में समेटने की कोशिश करती
बन्दई की अमावस्या
गहन अन्धेरा और दीपकों का उत्सव भी
ग़ुलामी की साज़िश और मुक्ति की तैयारी भी,
और पास ही एक छोटी झोपड़ी से
प्रतिपक्ष में खड़े दीये की मद्धिम रोशनी
साल के पेड़ों की पहचान बचा रही है
साथ ही उससे उभर रही है
झोपड़ी के अन्दर एक बूढ़े की पहचान —
जिसके गले में एक गमछी टँगी है,
घुटनों तक सफ़ेद धोती लिपटी है
उसके हाथ में बाँस की चमकती हुई छड़ी है
वह डोडे वैद्य है,
वैद्य की उपस्थिति
वहाँ अन्य सात जनों की पहचान बना रही है
‘तीन युवक और चार युवतियाँ’
और उन तक मद्धिम आवाज़ में
गाँव के किसी कोने से बन्दई का गीत पहुँचता है
‘लियो रे हिर्रे, लियो रे हिर...रे
हमारे खेत, हमारी खेती के साथी
लियो रे हिर्रे, लियो रे हिर...रे
तुम्हारे लिए दीये हैं, तुम्हारे लिए बाती
लियो रे हिर्रे, लियो रे हिर...रे
सब कुछ बचा रहे, सब कुछ बना रहे
लियो रे हिर्रे, लियो रे हिर...रे
हिसिंगा से परे, डाह से परे’
डोडे वैद्य के सामने गोबर लिपी ज़मीन पर
कुछ दोने हैं, दोनों में अरवा चावल हैं
धुअन है, हण्डिया है
वह सम्वाद की मुद्रा में कहता है —
‘गुड़ी की अन्तिम परीक्षा का दिन है यह
फिर से आज कहूँगा कि
यह साँप पकड़ने या जकड़ने का
जादू-टोना नहीं है
और न ही हम ऐसे ढोंगी विद्या के समर्थक हैं
यह आयुर्वेद का सम्पूर्ण ज्ञान
गन्ध और गीतों का समुच्चय है
मूल ‘होड़ो-पैथी’ है यह
जीवों के बाह्य और आन्तरिक
विशेषताओं और विसंगतियों का ज्ञान
और इसके सूत्राधार होते हैं मन्तर,
‘‘ये मन्तर केवल शब्द नहीं हैं
केवल ध्वनि मात्र नहीं हैं
और न ही यह मेरी रचना है
जिसे मैं अपनी अमरता के लिए
तुम्हारी स्मृतियों का स्तम्भ खड़ा कर रहा हूँ
यह किसी ओझा का झूठ या अन्धविश्वास नहीं है
यह उन सबका सार है
निचोड़ है, रस है
जो हमारे आसपास के जीवन में
दृश्य-अदृश्य, बोले-अबोले मौज़ूद है,
इस धरती में जीवन के तन्तु
एक-दूसरे प्राणियों से ही बुने हैं
हम अपने जीवन के लिए सबके आभारी हैं
प्रकृति में कोई भी किसी के बिना अधूरा है
उसकी पहचान अधूरी है
सम्पूर्ण जीवन में हम अपने सहजीवियों से
प्रत्यक्ष सम्वाद नहीं कर पाते हैं
यह मन्तर उनसे सम्वाद का माध्यम है
यह मन्तर है, अलिखित, अ-रूढ़ और स्व-अभिव्यक्ति’’
जोना (शिष्या) —
‘‘एक तरफ हम यहाँ
जीवन बचाने के लिए परीक्षा में उतरे हैं
दूसरी तरफ अमानवीय शक्तियाँ भी हैं
जो आज की रात तैयारी में हैं
अपनी क्षमता बढ़ाने के लिए
कहा जाता है
आज चुड़ैलें नाचती हैं अन्धेरी रात में
डायन-सभा होती है
जो अपनी देह में जलते हुए दिये को लेकर नृत्य करती हैं
आदमख़ोर कहीं अपने दाँत तेज़ कर रहे होंगे’’
सेः को (शिष्य) —
‘‘अगर हमारे मन्तर की शक्ति है तो
उनके मन्तर की भी शक्ति होगी ही
तो क्या यह शक्तियों की टकराहट होगी...?
क्या यह द्वन्द्व है
अपनी-अपनी शक्ति स्थापना का...?’’
डोडे वैद्य —
‘‘एक तरफ़ हम हैं
जो जीवन बचाने के लिए ख़ुद को समर्पित कर रहे हैं
और दूसरी तरफ़ अमानवीयता की भी तैयारी है
ग़ौर करने की बात है कि
हर शक्ति मानवीयता के नाम पर ही उभरती है,
हमारी तैयारी शक्ति स्थापित करने की नहीं है
बल्कि अमानवीय शक्तियों को
जीवन के केन्द्र में आने से रोकने की है’’
जितनी (शिष्या) —
‘‘तो फिर यह द्वन्द्व है, लड़ाई है
लेकिन हमें तो सबकी सेवा के लिए तत्पर होना है
हमारे लिए क्या शत्रु, क्या दोस्त
सब मरीज़ हैं, दुखी जन हैं?’’
डोडे वैद्य —
‘‘हाँ, हमें सबकी सेवा करनी है
हम वैद्य होंगे, रोग निवारक होंगे,
हमारा कोई शत्रु नहीं है
हमारा शत्रु सिर्फ़ रोग है, बीमारी है
और यह रोग विचार भी है, सोच भी है
एक व्यवस्था भी रोग होती है
हमें सबसे पहले रोग की पहचान करनी होगी’’
बिरसी (शिष्या) —
‘‘रोगी कौन है
रोग कैसे होता है
चुड़ैलें रोग फैलाती हैं
या डायनें रोग फैलाती हैं
हमें इन बातों पर विश्वास नहीं होता है
यह ओझाओं का ढोंग है
अपने लिए मुर्गा और बकरा जुगाड़ने का धन्धा है
इनके मन्तर और झाड़-फूँक कष्टदायी होते हैं’’
डोडे वैद्य —
‘‘हाँ, बिरसी!
चुड़ैलें और डायनें लोगों की कल्पना हैं
यह भी सत्ता के वर्चस्व का साधन है
उत्पीड़न का कारक
सम्पत्ति लालसा का प्रतिबिम्ब
यह संकेत है
आदिवासी दुनिया में
सत्ताओं के उदय का
पुरखों के गणतन्त्र के ख़िलाफ़ प्रभुता का,
यह संकेत है
अमानवीय शक्तियों के गठबन्धन का,
चानर-बानर के शुक्राणु
उलट्बग्घा के शुक्राणु यहीं से जन्म लेते हैं
यहीं अभिक्रिया होती है आदमी और बाघ की
जो सबसे ज़्यादा भयावह और अप्राकृतिक होता है’’
बिरसी —
‘‘हाँ, मैंने सपने में देखा था
रीडा आबा मुझे उसी तरह के बाघ की बात बता रहे थे
उन्होंने कहा था
कि आपसे हमें और भी ज्ञान मिलेगा
उन्होंने ही कहा था
आदमी ही बाघ बनते हैं’’
डोडे वैद्य —
‘‘हाँ, बिरसी
प्राकृतिक रोग का इलाज सहज है
मनुष्य निर्मित रोग का इलाज कठिन है
उसका रोग
उसकी व्यवस्था के रूप में प्रतिबिम्बित होता है,
हमारे अन्दर रोग
केवल प्राकृतिक नहीं है
कई बार हमारे मुण्डाओं, मानकियों और
पहान जैसे पदधारियों ने भी
अप्राकृत बाघों के साथ अभिक्रिया कर
मदरा मुण्डा और हीरा राजा के गणतन्त्र के विरुद्ध आचरण किया है
और एक ही गण के अन्दर
एक मुण्डा के यहाँ अलग व्यवस्था दिख जाती है
दूसरे मुण्डा के यहाँ अलग
हमने उसे एक रोग के रूप में चिह्नित किया है’’
जोना —
‘‘रिसा मुण्डा और मदरा मुण्डा के
गणतन्त्र के विरुद्ध
हमारे ही परवर्ती कुछ मुण्डाओं ने भी आचरण किया है
यानी, गणतन्त्र के विरुद्ध आचरण भी बाघपन है...?
बीमारी है, रोग है?’’
डोडे —
‘‘हाँ, लेकिन रोग या रोगी की पहचान
केवल उसके बाहरी लक्षण से ही
सम्भव नहीं है
गणतन्त्र यदि एक आवरण मात्र है
और उसके अन्दर उसकी अस्थि-मज्जाओं का अभाव है
तो वह धोखा है, ढोंग है
हमारे पुरखों ने अपनी अस्थि-मज्जाओं से उसकी संरचना की है
लेकिन हमारे ही मुण्डाओं ने
हमारे ही प्रतिनिधियों ने
उसको खोखला कर
आवरण मात्र रहने दिया है,
हमारे गणतन्त्र के आधार-गीत हैं
गीत ही मन्तर है
रोग निवारक प्रमुख औषधि हैं
गीतों का ह्रास गणतन्त्र का ह्रास है
गीत रहित गणतन्त्र प्रभुओं की व्यवस्था है
प्रभुताओं के ख़िलाफ़
मैं तुम्हें मन्तर दूँगा, गीत सौंपूँगा
वही होगा रोगों से मुक्ति का आधार,
यह गीत, यह मन्तर
रोग के कारण से
सम्वाद का एक माध्यम है
ठीक वैसे ही जैसे
पेड़ से गिरे मरीज़ को
जड़ी-बूटी देने से पहले
उस पेड़ से सम्वाद स्थापित करते हैं कि
वह हमें क्षमा करे हमारी अमर्यादा के लिए
यह मन्तर गीत है, स्वछन्द है
दृश्य-अदृश्य, बोले-अबोले प्रकृति का
सम्वाद है अपने सभी सहजीवियों से’’
सहमति में सात जनों के सिर
अपनी-अपनी स्वाभाविक मुद्राओं में हिले
वे अपनी मुद्राओं को स्वर देते हैं —
‘हाँ, हमें सम्वाद के
सभी तरीकों से अवगत होना है
सम्वाद के बिना
गीतों के बिना
हम कोई ठोस व्यवस्था नहीं बना सकते’
एक गहन शांति के बाद
डोडे वैद्य ने फिर कहा —
‘‘सुनो!
आज बन्दई की अमावस्या है —
‘ग़ुलामी की साज़िश
और मुक्ति की योजना भी है’
आज का त्योहार
हमारे सहजीवियों के लिए है
मवेशियों के लिए है
यह उनकी सेवा का अवसर है
उनसे सम्वाद को प्रगाढ़ करना है’’
सात जनों में से
एक की प्रश्नवाचक मुद्रा उभरी —
‘‘यह सम्वाद
कैसे प्रगाढ़ होता है?’’
डोडे —
‘‘सम्वाद की प्रक्रिया होती है
उस प्रक्रिया से गुज़रे बिना
हमें अजनबीपन का बोध होता है
हमने अपने सहजीवियों के
सम्मान में उपवास किया
ताकि वे हमारी आँखों से ही
समझ सकें हमारी भावना
और उनकी भावना में
उतर आए अस्पर्श नमी
हमने उन्हें नहलाया
कुजरी तेल से तेलाया
उड़द, चावल नमक की टीप दी
उन्हें धन्यवाद कहा कि
उन्होंने हर बार की भाँति
इस बार भी हमारी खेती सम्पन्न की
वे हमारे बच्चों की आँखों की हँसी हैं
हमारे पुरखों की शान्ति के कारक
हमने उन्हें हण्डिया, सिन्दूर अर्पित किया
हमने उनके पुरखों को स्मरण किया कि
उन्होंने ही हमें घने जंगलों के बीच
जीवन का सहारा दिया
वे हमारे गणचिह्न हैं, हमारे रक्षक,
हमने स्मरण किया ‘टूण्टा साईल काचा बियर’ को
कि उन्होंने आदिम दिनों में
हमारे जीवन का जोख़िम भरा रास्ता साफ़ किया
फिर पूरे गाँव के सहजीवियों को
अखड़ा में एकत्रित किया
और उनके साथ मान्दर, नगाड़े, गीत साझा किए —
‘हिर रे, हिर रे, तोतो नोनो
हिर रे, हिर रे, तोतो नोनो
आज तुमसे काम नहीं लेंगे
आज तुम्हारी सेवा करेंगे
तुम्हारी इच्छाशक्ति से ही
तुम्हारी लगन से ही
इस जीवन को हमने सँवारा
इस देश को हमने सोना बनाया
हिर रे, हिर रे, घुर रे, हुर्र रे
छगरी रे, गारू रे, काड़ा रे’
(सभी शिष्य सामूहिक स्वर देते हैं)
फिर और एक मुद्रा प्रश्नवाचक हुई —
‘‘गीत क्यों ज़रूरी होते हैं?’’
बिरसी —
‘‘सम्वाद और सम्मान के लिए’’
डोडे —
‘‘सम्वाद और सम्मान
सहजीविता के लिए अनिवार्य शर्त है
जंगलों से, नदियों से
पेड़ों से, जुगनुओं से, तितलियों से
दृश्य-अदृश्य, बोले-अबोले प्रकृति से
विश्व कल्याण के लिए,
सम्पूर्ण जीवन की लय और
श्रम के लय की एका से ही
सहजीविता सम्भव होती है
श्रम का शोषण
इस लय को तोड़ता है
इसी लय को गूँथते हैं गीत
गीत ही हमारे मन्तर हैं
यह कोई आदेश नहीं है
कोई फ़तवा नहीं है
स्त्री-पुरुष, बच्चे-बूढ़े
इसके सब समान अधिकारी हैं
वंचित जनों का प्राण है यह’’
जितनी —
‘‘गीत हमारे रोग निवारण की
औषधि है
इस औषधि की जड़ अखड़ा है
अवसाद की जड़ी, अकेलेपन की बूटी...?’’
डोडे —
‘‘हाँ, यह रोग निवारण की औषधि है
इस औषधि की जड़ केवल अखड़ा नहीं रही है
हमारा सम्पूर्ण गणतन्त्र इसकी जड़ी है
गितिः ओड़ाः, धुमकुड़िया, घोटुल
पड़हा, पंचायत, सरना, मदाईत,
इसके मजबूत खूँटे हैं
जिसने हमारी दुनिया को चट्टान की तरह बाँधे रखा
श्रम के शोषण का प्रतिपक्ष
और सत्ताओं के लिए कड़वा घूँट
जब-जब गीत टूटे हैं
सत्ताओं के विषाणु पनपे हैं।’’
रुसू (शिष्य) —
‘यह हमारी प्रकृति में ही मौजूद है
उसी में हैं इसके तन्तु’
डोडे —
‘‘हाँ, मूल तो प्रकृति ही है
वर्तमान दम्भी विज्ञान का उत्स भी
सभी उत्पादित वस्तुओं का सोता भी,
आह...लेकिन उसी प्रकृति का आज इतना अपमान है!
जड़ें, छाल, पत्ते, फल, पत्थर, बीज, लतर
सभी जीवन के औषधि हैं
प्रकृति अंगी है, हम अंग हैं
उसका ही सम्मान हमारा धर्म है
उसकी रक्षा हमारा कर्त्तव्य
यही है आदिवासियत का आधार
और यही आधार है सम्पूर्ण सृष्टि के जीवन का।