भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"पीपल की होली / कुमार मुकुल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Kumar mukul (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार मुकुल |संग्रह=सभ्यता और जी...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
15:21, 21 दिसम्बर 2017 के समय का अवतरण
यूकलिप्टस के पड़ोसी पीपल ने
अबके होली में वो रंग जमाया
कि उसके सारे साथी दंग रह गए
सहस्त्रबाहु सी भुजाओं से
छिड़क रहा था वह सुग्गापंखी रंग
सुनहली आभा से दिप रहा था अंग-अंग उसका
अतिथि तोता-मैना और काली कोयलिया
सब लूट रहे थे महाभोज का आनंद
परसने का अंदाज भी था नया
हर शाखा पर पुष्ट पकवान थे बफेडिनर की तरह
बस खाने का ढ़ंग था हिन्दुस्तानी प्योर
चोंच के आगे क्या चम्मच का चलता जोर
भोजनोपरांत अतिथियों ने गाया समूहगान
मस्ती में डूब गया सारा जहान
पता ही ना चला कैसे बीता दिन
चांदनी से कब चह-चहा गया आसमान।