भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"पद / सूरदास" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 7: पंक्ति 7:
  
  
प्रीति करि काहु सुख न लह्यो।
+
मेरो मन अनत कहाँ सुख पावे।
  
प्रीति पतंग करी दीपक सों, आपै प्रान दह्यो॥
+
जैसे उड़ि जहाज की पंछि, फिरि जहाज पर आवै॥
  
अलिसुत प्रीति करी जलसुत सों, संपति हाथ गह्यो।
+
कमल-नैन को छाँड़ि महातम, और देव को ध्यावै।
  
सारँग प्रीति करी जो नाद सों, सन्मुख बान सह्यो॥
+
परम गंग को छाँड़ि पियसो, दुरमति कूप खनावै॥
  
हम जो प्रीति करि माधव सों, चलत न कछु कह्यो।
+
जिहिं मधुकर अंबुज-रस चाख्यो, क्यों करील-फल खावै।
  
'सूरदास' प्रभु बिनु दुख दूनो, नैननि नीर बह्यो॥
+
'सूरदास' प्रभु कामधेनु तजि, छेरी कौन दुहावै॥

12:41, 31 जुलाई 2006 का अवतरण

लेखक: सूरदास

~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~


मेरो मन अनत कहाँ सुख पावे।

जैसे उड़ि जहाज की पंछि, फिरि जहाज पर आवै॥

कमल-नैन को छाँड़ि महातम, और देव को ध्यावै।

परम गंग को छाँड़ि पियसो, दुरमति कूप खनावै॥

जिहिं मधुकर अंबुज-रस चाख्यो, क्यों करील-फल खावै।

'सूरदास' प्रभु कामधेनु तजि, छेरी कौन दुहावै॥