भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"सोचते हैं वे मर चुका हूँ मैं / दीपक शर्मा 'दीप'" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दीपक शर्मा 'दीप' |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

12:37, 23 दिसम्बर 2017 के समय का अवतरण


सोचते हैं वे मर चुका हूँ मैं
ख़ैर थोड़ा बहुत बचा हूँ मैं

एक बेचेहरगी सी है मुझमें
और बेचेहरगी! ख़फ़ा हूँ मैं

तोड़ दे तोड़ दे ऐ बदसूरत!
तोड़ भी दे कि आईना हूँ मैं

वो निकाले भी तो भी मर जाए
ऐसा अंदर तलक घुसा हूँ मैं

नींद में छट-पटा रहा हूँ बस
कौन कहता है उठ रहा हूँ मैं

यार अपना भी है पता मुझको
और तुझको भी जानता हूँ मैं

रोज़ ख़ुद को ही बो के तकता हूँ
रोज़ ख़ुद को ही काटता हूँ मैं