भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"हिज्र के सवाल पे वबाल कम नहीं हुआ / दीपक शर्मा 'दीप'" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दीपक शर्मा 'दीप' |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
पंक्ति 22: पंक्ति 22:
 
इक तरफ़ फ़रेब था तो इक तरफ़ थी उलझनें
 
इक तरफ़ फ़रेब था तो इक तरफ़ थी उलझनें
 
दिल दबा था बीच में हलाल कम नहीं हुआ
 
दिल दबा था बीच में हलाल कम नहीं हुआ
<poem>
+
</poem>

19:58, 23 दिसम्बर 2017 के समय का अवतरण


हिज्र के सवाल पे वबाल कम नहीं हुआ
चुप रहे भले मगर मलाल कम नहीं हुआ

दोस्तों ने डाल दी क़बा-ए-ख़ार, हाय रे..
ज़िन्दगी-सराय में कमाल कम नहीं हुआ

इस तरह लगाव था कि सिर कटे को देखकर
धड़ पकड़ लिया गया उछाल कम नहीं हुआ

सोचते रहे निजात किस तरह मिले मगर
दिन-ब-दिन बढ़ा किया ये जाल कम नहीं हुआ

इक तरफ़ फ़रेब था तो इक तरफ़ थी उलझनें
दिल दबा था बीच में हलाल कम नहीं हुआ