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23:37, 27 जून 2008 का अवतरण
गीतकार : गोपालदास नीरज
मेघा छाए आधी रात,
बैरन बन गई निंदिया बता दे मैं क्या करूँ मेघा छाए आधी रात,
बैरन बन गई निंदिया
सब के आंगन दिया जले रे, मोरे आंगन जिया हवा लागे शूल जैसी, ताना मारे चुनरिया
कैसे कहूँ मैं मन की बात, बैरन बन गयीं निंदिया, बता दे मैं क्या करूँ
मेघा छाए आधी रात,
बैरन बन गई निंदिया
रूठ गये रे सपने सारे, टूट गयी रे आशा नैन बहे रे गंगा मोरे, फिर भी मन है प्यासा
आई है आँसू की बारात, बैरन बन गयी निंदिया बता दे मैं क्या करूँ
मेघा छाए आधी रात,
बैरन बन गई निंदिया