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"देर लगी आने में तुमको / इंदीवर" के अवतरणों में अंतर

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'''गीतकार : मज़रूह सुल्तानपुरी
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रहें ना रहें हम, महका करेंगे बन के कली,
 
रहें ना रहें हम, महका करेंगे बन के कली,
 
   
 
   

23:36, 27 जून 2008 का अवतरण

गीतकार : मज़रूह सुल्तानपुरी


रहें ना रहें हम, महका करेंगे बन के कली,

बन के सबा, बाग़े वफा में ...


मौसम कोई हो इस चमन में रंग बनके रहेंगे हम खिरामा ,

चाहत की खुशबू, यूँ ही ज़ुल्फ़ों से उड़ेगी, खिजां हो या बहारां

यूँ ही झूमते, युहीँ झूमते और खिलते रहेंगे,

बन के कली बन के सबा बाग़ें वफ़ा मेंरहें ना रहें हम ...


खोये हम ऐसे क्या है मिलना क्या बिछड़ना नहीं है, याद हमको

कूचे में दिल के जब से आये सिर्फ़ दिल की ज़मीं है याद हमको,

इसी सरज़मीं, इसी सरज़मीं पे हम तो रहेंगे,

बन के कली बन के सबा बाग़े वफ़ा में ...रहें ना रहें हम ...


जब हम न होंगे तब हमारी खाक पे तुम रुकोगे चलते चलते ,

अश्कों से भीगी चांदनी में इक सदा सी सुनोगे चलते चलते ,

वहीं पे कहीं, वहीं पे कहीं हम तुमसे मिलेंगे,

बन के कली बन के सबा बाग़े वफ़ा में ...


रहें ना रहें हम, महका करेंगे ...