भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"जंग खाया लौह / कैलाश पण्डा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कैलाश पण्डा |अनुवादक= |संग्रह=स्प...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

14:36, 27 दिसम्बर 2017 के समय का अवतरण

जंगखाया लौह
कितनों की जिंदगी
संवार देगा
वायु के संसर्ग से
जल के स्पर्श से
वह उदारीण मात्र ही सही
कठोरता की अभिव्यंजना को
भले ही त्याग दिया हो
जो लगा था
उतार दिया हो
अपने कार्य के प्रति
उदासीन नहीं
किसी भी तरह
शर्मसार नहीं
समय के वेग ने
कर दिया जर्जर
किन्तु अब निर्झर
समय गंवाता नहीं
तभी तो वनज
कम होता नहीं
सूरत पर मत जाओ
अनुभव की चादर में लिपटा वह
भले ही शरीर से
असमर्थ सा
दवा के रूप में
पेट में जाकर ज्वार देगा।
स्वयं का अस्तित्व खो
परोपकारमय हो
एक दिशा देगा
जंग खाया लौह
कितनों को तार देगा।