भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"पुस्तक / कैलाश पण्डा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कैलाश पण्डा |अनुवादक= |संग्रह=स्प...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

14:44, 27 दिसम्बर 2017 के समय का अवतरण

पुस्तक तुम
जीवन की गहराइयों को
शब्दों के माध्यम से
आत्मसात् कर्
संजोये रखती हो
सजने संवरने के लिए
कवि की लेखनी के माध्यम से
तराशी जाती रही हो
छंद अलंकारादि से
सुसज्जित हो
एक दुल्हन की तरह
स्वीकारी जाती रही हो
जब तुम बोलती हो
परकाया प्रवेश कर
तब नये विचार को
नये अनुभव के साथ
जन्म देती रही हो
कहने को कागज के पृष्ठ हो
पारखी जानता है
कितनी पुष्ट हो
पन्ने पलटते हैं जब
कुछ नया घटता है
समाज बदलता हो या नहीं
किन्तु पाठक संभलता है
भीड़ में भटके कुछ लोग
लिख देते हैं काला अध्याय,
अहम् के पूजारी
मिटा देना चाहते हैं
सत् को
किन्तु वह मरता नहीं
मौका पाकर
अमर बेल की तरह
सूख कर भी
वर्षाती मौसम में फूटता है
और तुम्हारे अस्तित्व को
बनाये रखता है।