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"सिंघासण डांवाडोल हुयो / मनोज चारण 'कुमार'" के अवतरणों में अंतर

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जद-जद आथुणी भाळ चली, आभै मैं अंधेरों उतरयायो।
धूँवै का धकरोळ उठया, बिजळयां कड़की अर मे आयो।
अ खेत सींवाड़ा सै सिळग्या, बसत्यां उजड़गी राताँ नै।
झूठा नाजोगा सूता रैग्या, अर बात बिगड़गी बाताँ मैं।
धूळ उड़ाती फोजाँ आगी, जद लाव निसरगी हाथा सें।
भारत री धरती गुलाम बणी, अर रुळती देखी माता नै।
तो उथल-पुथल माची भारी, अर रजपूती रो डोळ गयो।
जद-जद हमलो मलेछ करयो, सिंघासण डांवाडोल हुयो।१।

जरा राकसी पायो जिणनै, इतिहास याद करै उणनै।
जरासंध बड़ो बलकारी हो, बो जोधो जबर जुझारी हो।
सगळा राजावा दळ बैठयो, बो कंस रै साथै रळ बैठयो।
पण घात करण नै कान्हे पर, बो यवनराज बुला बैठयो।
मत मारीजी उण दुस्टी री, सिरजणा करै जो सिस्टी री।
कान्हे चतुर चिरतालै नै, कुण जाण सकै उण ग्वालै नै।
मथुरा सूं द्वारका चल आयो, अर चाल आपरी चल आयो।
देश री लाज बचावण नै, जद कान्हूं भी रणछोड़ बण्यों।
जद-जद हमलो मलेछ करयो, सिंघासण डांवाडोल हुयो।२।

बो राय पिथौरा गढ़ बंकों, दिल्ली मैं बजातो हो डंको।
बो मरुभोम रो मतवालों, बो हिन्दुआ गौरव रखवालो।
खेल्यो बो पुष्कर घाटी मैं, बो बड़ो हुयो इण माटी मैं।
चौहानी खून रगा मैं हो, दिल्ली तंवरा रै सगा मैं हो।
बो जयचंद रो भाणेज हुतो, पण रिस्तै सूं परहेज हुतो।
बण घणी कुटिलता दिखलाई, मामै री धीवड़ उठवाई।
जद पार नहीं पाई रण मैं, आग लगी राठौड़ी तन मैं।
पिरथी सूं बदलो लेवण नै, राठौड़ी खून भी खोल गयो।
जद-जद हमलो मलेछ करयो, सिंघासण डांवाडोल हुयो।३।

सांगो जबरो हो वीर घणू, हद भांत लड़ाको धीर घणू।
घाव अस्सी उण जोधै रै, त्रिशूल छप्यो ज्यू गोधे रै।
रणखेता खांडो खड़कातो हो, दुसम्याँ रै मन रो कांटो हो।
लोदी सूं लेवण टक्कर नै, याद करयो मुगल उण बब्बर नै।
बो भूल गयो इतिहासा नै, अर बुला लियो उण जब्बर नै।
मुगला लोदी नै लाट लियो, दिल्ली तख्त नै पाट लियो।
मेवाड़ धरा पर घात बणी, सांगै री भूल अंधारी रात बणी।
चितौड़ी गढ़ री शान गई, खानवा माय मेवाड़ हलाल हुयो।
जद-जद हमलो मलेछ करयो, सिंघासण डांवाडोल हुयो।४।

इण भांत जणा मैं याद करूँ, छाती पर नाग फुंकार भरै।
जद बाड़ खेत नै खाण लगै, फसलां री कुण रुखाळ करै।
जद जायोड़ा चेपै डांगा री, कुण मायड़ री देखभाल करै।
जद बैद संखियों दे नाखै, कुण रोगी री संभाळ करै।
सदा रुखालो राम रैयो है, घरभेदी रो घाव सह्यो है।
घाव घणा खाया छाती पर, गोळयां चली अठे गांधी पर।
पण हर बार राम री जीत हुवैला, भारत म्हारो अमर रहैला।
भू रो भार उतारण सारू, चक्र सुदरसण बोल गयो।
जद-जद हमलो मलेछ करयो, सिंघासण डांवाडोल हुयो।५।