|
|
पंक्ति 7: |
पंक्ति 7: |
| {{KKCatGeet}} | | {{KKCatGeet}} |
| <poem> | | <poem> |
− | जीवन के फेनिल समुद्र में उठता ज्वार किसे कहते हैं
| + | xxxxx |
− | मृदु मनुहार किसे कहते हैं, अमृतधार किसे कहते हैं
| + | |
− | प्रियतम के स्वागत में सजती बन्दनवार किसे कहते हैं
| + | |
− | | + | |
− | आंकोगी जब मूल्य अश्रु का, पदचिन्हों को दोहराओगी
| + | |
− | तब तुम समझोगी पाषाणी, पागल प्यार किसे कहते हैं
| + | |
− | | + | |
− | रूप चाँद सा, सूरज सा है, धीरे-धीरे ढल जायेगा
| + | |
− | रूप पाहुना है दो दिन का, आज नहीं तो कल जायेगा
| + | |
− | रूप मोम की गुड़िया जैसा, छांव तले तो महक-बहक ले
| + | |
− | भरी दुपहरी गर्म रेत में पांव पड़े तो गल जायेगा
| + | |
− | | + | |
− | रूप न होगा जब चंदा सा, सूरज सा, मोमी गुड़िया सा
| + | |
− | तब पहचानोगी सपनों का राजकुमार किसे कहते हैं
| + | |
− | | + | |
− | कोलाहल में लुप्त हो गये, कैसे मूक हमारे स्वर थे
| + | |
− | बनते ही सत्वर मिट जाने वाले अक्षर क्या अक्षर थे
| + | |
− | प्रश्न-चिन्ह सी देहगन्ध आनाकानी करती आंगन में
| + | |
− | अनायास बन जाने वाले क्या संबंध सभी नश्वर थे
| + | |
− | | + | |
− | सत्य सनातन, प्रीति पुरातन, अन्तर में जब लख पाओगी
| + | |
− | तब तुम जानोगी कल्याणी, प्रत्युपकार किसे कहते हैं
| + | |
− | | + | |
− | ठोकर लग जाने के भय से मैं पथ से हट जाऊंगा क्या
| + | |
− | कटु सत्यों से बच, मिथ्या माया की टेक लगाऊंगा क्या
| + | |
− | क्या मैं अपनी भाषा-परिभाषा से समझौता कर लूंगा
| + | |
− | ऊब अकेलेपन से भीड़-भड़क्के में खो जाऊंगा क्या
| + | |
− | | + | |
− | ढूंढोगी जब घर-आंगन में, वन-उपवन में, नगर-गाँव में
| + | |
− | देखोगी उन्मुक्त प्राण का मुक्त विहार किसे कहते हैं
| + | |
| </poem> | | </poem> |