भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
झलक्क चित्तभित्र देखियो चढाउँदै डर ।।
जहाँतहीं विपत् अशान्ति कष्ट दुःख देखिए
भविष्यतर्फ दृष्टि दी म थर्कमान नै भएँ ।।छ।।।।५।।
त्यही पला त गूँडबाट निस्किएर गौंगली