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कलम चलेन / बदरीनाथ भट्टराई

No change in size, 09:14, 8 जनवरी 2018
झलक्क चित्तभित्र देखियो चढाउँदै डर ।।
जहाँतहीं विपत् अशान्ति कष्ट दुःख देखिए
भविष्यतर्फ दृष्टि दी म थर्कमान नै भएँ ।।छ।।।।५।।
त्यही पला त गूँडबाट निस्किएर गौंगली
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