भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"गेंद-तड़ी / कन्हैयालाल मत्त" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कन्हैयालाल मत्त |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 8: | पंक्ति 8: | ||
{{KKCatBaalKavita}} | {{KKCatBaalKavita}} | ||
<poem> | <poem> | ||
+ | है कसरत दमदार बड़ी, | ||
+ | गेंद तड़ी, भई, गेंद तड़ी ! | ||
+ | भागो-भागो, हाथ न आओ, | ||
+ | जमकर लम्बी दौड़ लगाओ, | ||
+ | पल-भर रुके कि गेंद पड़ी | ||
+ | गेंद तड़ी, भई, गेंद तड़ी ! | ||
+ | |||
+ | अन्दर-बाहर आओ-जाओ, | ||
+ | लुका-छिपी का रंग जमाओ, | ||
+ | दाँव-पेच की लगे झड़ी, | ||
+ | गेंद तड़ी, भई, गेंद तड़ी ! | ||
+ | |||
+ | खुलकर करो निशानेबाज़ी, | ||
+ | खेल-खेल में क्या नाराज़ी, | ||
+ | जुड़े टूटती हुई कड़ी, | ||
+ | गेंद तड़ी, भई, गेंद तड़ी ! | ||
</poem> | </poem> |
01:23, 20 जनवरी 2018 के समय का अवतरण
है कसरत दमदार बड़ी,
गेंद तड़ी, भई, गेंद तड़ी !
भागो-भागो, हाथ न आओ,
जमकर लम्बी दौड़ लगाओ,
पल-भर रुके कि गेंद पड़ी
गेंद तड़ी, भई, गेंद तड़ी !
अन्दर-बाहर आओ-जाओ,
लुका-छिपी का रंग जमाओ,
दाँव-पेच की लगे झड़ी,
गेंद तड़ी, भई, गेंद तड़ी !
खुलकर करो निशानेबाज़ी,
खेल-खेल में क्या नाराज़ी,
जुड़े टूटती हुई कड़ी,
गेंद तड़ी, भई, गेंद तड़ी !