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खिडकी से नीचे खिसकती
चांदनी
पसर गई है हरसिंगार की घनी
छांव में
किबाड़ की ओट में छुप गयी है
मेरी कविता की
कोई एक नई पंक्ति...
जैसे जाड़े में गांती बांधे मेरी दुलारी बिटिया
खिलखिलाती हुई हंस रही हो
अब भी अगर नींद नहीं आयी
तो जीवन भर जगा रह जाउंगा
इस घनी छांव की प्रत्याशा में
रह जाउंगा जीवन भर।
(मैथिली से अनुवाद : कुमार मुकुल)