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आज हस्तिनापुर प्रसन्न है
लाक्षागृह में जले पाण्डव।
छद्म महल की प्राचीरें थीं
अन्य सभी महलों से हटके
द्वार अनोखे पग पग धोखे
और भ्रमों के झूमर लटके
करते नृत्य शकुनि के पासे
फँसकर जिनमें छले पाण्डव।
कौरव दल को ज्ञात नहीं है
लाक्षागृह की सब सच्चाई
भले कोख है अलग किंतु
हैं पाण्डु पुत्र उनके ही भाई
पग पग पर धोखे खाकर ही
बचपन ही से पले पाण्डवI
कौरव मन में खुशी मनाते
बने हुए उत्तराधिकारी
उन्हें पता क्या किसके कंधे
पर है कितनी ज़िम्मेदारी
फिर भारत का भाग्य सजाने
अग्रिम पथ पर चले पाण्डव ।