भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"अनोखी रीत/ ज्योत्स्ना शर्मा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= ज्योत्स्ना शर्मा |संग्रह= }} Category:...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
पंक्ति 5: पंक्ति 5:
 
}}
 
}}
 
[[Category: ताँका]]
 
[[Category: ताँका]]
 +
 
<poem>
 
<poem>
 +
 +
17
 +
दर्द ही बाँटे
 +
अबूझ  है पहेली
 +
प्रीत सहेली
 +
अक्सर ये रुलाए
 +
क्यों दिल को है भाए ?
 +
18
 +
सोए वक़्त ने
 +
करवट बदली
 +
फिर सो गया
 +
तड़पती ज़िंदगी
 +
सुख-चैन खो गया।
 +
19
 +
अनोखी रीत
 +
किसने लिख डाले
 +
काली चादर
 +
इतने सारे गीत
 +
ज्यों जलते हों दीप ।
 +
20
 +
मिले ही क्यों थे?
 +
मीत मुझे राहों में
 +
ख़्वाबों से आते
 +
बिन दो बोल कहे
 +
क्यों मौन चले जाते ?
 +
21
 +
बहुत प्यारा
 +
संसार हमारा है
 +
मान भी लो न
 +
महकाया जिसने
 +
वो प्यार तुम्हारा है ।
 +
22
 +
मेरी सुन लो
 +
कहो कुछ अपनी
 +
मन छलता
 +
रह जाना यूँ मौन
 +
तुम्हारा है खलता ।
 +
23
 +
राहों में काँटे
 +
कि हों फूल ,चलना
 +
थाम के दिल
 +
उठते हैं क़दम
 +
मिले तभी मंज़िल ।
 +
24
 +
मीत पथ के
 +
मौन संग चलना
 +
देता है पीड़ा
 +
ऐसे बीच हमारे
 +
अबोले का पलना ।
  
 
</poem>
 
</poem>

16:45, 7 फ़रवरी 2018 के समय का अवतरण


17
दर्द ही बाँटे
अबूझ है पहेली
प्रीत सहेली
अक्सर ये रुलाए
क्यों दिल को है भाए ?
18
सोए वक़्त ने
करवट बदली
फिर सो गया
तड़पती ज़िंदगी
सुख-चैन खो गया।
19
अनोखी रीत
किसने लिख डाले
काली चादर
इतने सारे गीत
ज्यों जलते हों दीप ।
20
मिले ही क्यों थे?
मीत मुझे राहों में
ख़्वाबों से आते
बिन दो बोल कहे
क्यों मौन चले जाते ?
21
बहुत प्यारा
संसार हमारा है
मान भी लो न
महकाया जिसने
वो प्यार तुम्हारा है ।
22
मेरी सुन लो
कहो कुछ अपनी
मन छलता
रह जाना यूँ मौन
तुम्हारा है खलता ।
23
राहों में काँटे
कि हों फूल ,चलना
थाम के दिल
उठते हैं क़दम
मिले तभी मंज़िल ।
24
मीत पथ के
मौन संग चलना
देता है पीड़ा
ऐसे बीच हमारे
अबोले का पलना ।