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"अधर सजे/ज्योत्स्ना शर्मा" के अवतरणों में अंतर

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तुम भी ले आओ न !
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ऊँचे और प्यारे से
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मीठे ,उजियारे से ।
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मैंने गीत सजाए
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यहाँ प्रीत के
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कठिनाई पे जीतें
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मजबूत इरादे ।
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धूप सुहानी
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क्यों तमक गई हो ?
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राह रोकता
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देखो -मेघ रंगीला ,
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कुछ तो ठंड खाओ !
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रे मन तेरा
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अद्भुत  व्यवहार
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दीप- नगरी
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है जगर- मगर
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हवा पहरेदार !
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मोह ने बाँधा
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बिछोह ने छुडाया
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रिश्ते जंजीरे
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मन ने पहचाना
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अपना या पराया ।
  
 
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16:52, 7 फ़रवरी 2018 का अवतरण


41
अधर सजे
मधुर मुस्कान से
शिखर छू लें
दमके गगन में
ज्यों नव विहान हो !
42
अरे बटोही
मंजिल है मुस्कान
नहीं अधूरी
मुक्त मना- सा बाँट
हो चाह सभी पूरी ।
43
हाट रात की
तुम भी ले आओ न !
कुछ सपने
ऊँचे और प्यारे से
मीठे ,उजियारे से ।
44
गाओ रे मन
मैंने गीत सजाए
यहाँ प्रीत के
कठिनाई पे जीतें
मजबूत इरादे ।
45
धूप सुहानी
क्यों तमक गई हो ?
राह रोकता
देखो -मेघ रंगीला ,
कुछ तो ठंड खाओ !
46
रे मन तेरा
अद्भुत व्यवहार
दीप- नगरी
है जगर- मगर
हवा पहरेदार !
47
मोह ने बाँधा
बिछोह ने छुडाया
रिश्ते जंजीरे
मन ने पहचाना
अपना या पराया ।