भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"ओस की बूँद (हाइकु) / जगदीश व्योम" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जगदीश व्योम }} <poem> ( हाइकु ) ओस की बूँद कैक्टस पर बै…) |
|||
(2 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 3 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|रचनाकार=जगदीश व्योम | |रचनाकार=जगदीश व्योम | ||
}} | }} | ||
+ | [[Category:हाइकु]] | ||
<poem> | <poem> | ||
− | |||
− | |||
+ | 1 | ||
+ | नदी बनाता | ||
+ | सोख हवा से नमीं | ||
+ | वृद्ध पहाड़। | ||
+ | 2 | ||
+ | छीन लेता है | ||
+ | धनी मेघों से जल | ||
+ | दानी पहाड़ | ||
+ | 3 | ||
+ | अनाम गंध | ||
+ | बिखेर रही हवा | ||
+ | धान के खेत । | ||
+ | 4 | ||
ओस की बूँद | ओस की बूँद | ||
कैक्टस पर बैठी | कैक्टस पर बैठी | ||
शूली पे सन्त । | शूली पे सन्त । | ||
+ | 5 | ||
+ | छिड़ा जो युद्ध | ||
+ | रोयेगी मानवता | ||
+ | हँसेंगे गिद्ध । | ||
+ | 6 | ||
+ | बिना धूरी की | ||
+ | चल रही है चक्की | ||
+ | पिसेंगे सब । | ||
+ | 7 | ||
+ | गंध के बोरे | ||
+ | लाता है ढो ढोकर | ||
+ | हवा का घोड़ा । | ||
+ | 8 | ||
+ | धूप में तपा | ||
+ | पा गया सुर्ख रंग | ||
+ | टीले का टेसू । | ||
+ | 9 | ||
+ | चीखता रहा | ||
+ | झील पार चकोर | ||
+ | निर्मोही चाँद । | ||
+ | 10 | ||
+ | उगने लगे | ||
+ | कंकरीट के वन | ||
+ | उदास मन । | ||
</poem> | </poem> |
18:13, 9 फ़रवरी 2018 के समय का अवतरण
1
नदी बनाता
सोख हवा से नमीं
वृद्ध पहाड़।
2
छीन लेता है
धनी मेघों से जल
दानी पहाड़
3
अनाम गंध
बिखेर रही हवा
धान के खेत ।
4
ओस की बूँद
कैक्टस पर बैठी
शूली पे सन्त ।
5
छिड़ा जो युद्ध
रोयेगी मानवता
हँसेंगे गिद्ध ।
6
बिना धूरी की
चल रही है चक्की
पिसेंगे सब ।
7
गंध के बोरे
लाता है ढो ढोकर
हवा का घोड़ा ।
8
धूप में तपा
पा गया सुर्ख रंग
टीले का टेसू ।
9
चीखता रहा
झील पार चकोर
निर्मोही चाँद ।
10
उगने लगे
कंकरीट के वन
उदास मन ।