भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"ऊब चले हैं (हाइकु) / कमलेश भट्ट 'कमल'" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
पंक्ति 5: | पंक्ति 5: | ||
[[Category:हाइकु]] | [[Category:हाइकु]] | ||
<poem> | <poem> | ||
− | |||
− | + | 1 | |
− | ऊब चले हैं | + | ऊब चले हैं |
वर्षा की प्रतीक्षा में | वर्षा की प्रतीक्षा में | ||
पेड़-पौधे भी। | पेड़-पौधे भी। | ||
+ | 2 | ||
+ | पीने लगा है | ||
+ | धरती का भी पानी | ||
+ | प्यासा सूरज । | ||
+ | 3 | ||
+ | निकली नहीं | ||
+ | कंजूस बादलों से | ||
+ | एक भी बूँद । | ||
+ | 4 | ||
+ | तरस गये | ||
+ | पहचान को खुद | ||
+ | सावन-भादौं । | ||
+ | 5 | ||
+ | कहो तो सही | ||
+ | मन प्राणों से तुम | ||
+ | वक्त सुनेगा । | ||
+ | 6 | ||
+ | मुँह चिढ़ाए | ||
+ | लम्बे-चौड़े पुल को | ||
+ | सूखती नदी । | ||
+ | 7 | ||
+ | चिनगारियाँ | ||
+ | फैल गईं नभ में | ||
+ | चाँद निश्चिंत । | ||
+ | 8 | ||
+ | धूल ढँकेगी | ||
+ | पत्तों की हरीतिमा | ||
+ | कितने दिन ? | ||
+ | 9 | ||
+ | है कोई रात | ||
+ | जिसका अभी तक | ||
+ | न हुआ प्रात । | ||
+ | 10 | ||
+ | कड़ी धूप में | ||
+ | मशाल लिये खड़ा | ||
+ | तन्हा पलाश । | ||
+ | 11 | ||
+ | ठीक वैसा ही | ||
+ | सरहद पार भी | ||
+ | हर्ष-विषाद । | ||
+ | 12 | ||
+ | वर्षा ने बुने | ||
+ | शीशे की खिड़की पे | ||
+ | बूँदों के तार । | ||
+ | 13 | ||
+ | मर जाएँगे | ||
+ | हरियाली मरी तो | ||
+ | हम सब भी । | ||
+ | -0- | ||
+ | |||
</poem> | </poem> |
20:26, 10 फ़रवरी 2018 के समय का अवतरण
1
ऊब चले हैं
वर्षा की प्रतीक्षा में
पेड़-पौधे भी।
2
पीने लगा है
धरती का भी पानी
प्यासा सूरज ।
3
निकली नहीं
कंजूस बादलों से
एक भी बूँद ।
4
तरस गये
पहचान को खुद
सावन-भादौं ।
5
कहो तो सही
मन प्राणों से तुम
वक्त सुनेगा ।
6
मुँह चिढ़ाए
लम्बे-चौड़े पुल को
सूखती नदी ।
7
चिनगारियाँ
फैल गईं नभ में
चाँद निश्चिंत ।
8
धूल ढँकेगी
पत्तों की हरीतिमा
कितने दिन ?
9
है कोई रात
जिसका अभी तक
न हुआ प्रात ।
10
कड़ी धूप में
मशाल लिये खड़ा
तन्हा पलाश ।
11
ठीक वैसा ही
सरहद पार भी
हर्ष-विषाद ।
12
वर्षा ने बुने
शीशे की खिड़की पे
बूँदों के तार ।
13
मर जाएँगे
हरियाली मरी तो
हम सब भी ।
-0-