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"ऊब चले हैं (हाइकु) / कमलेश भट्ट 'कमल'" के अवतरणों में अंतर

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ऊब चले हैं
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वर्षा की प्रतीक्षा में  
 
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पेड़-पौधे भी।
 
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पीने लगा है
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धरती का भी पानी
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प्यासा सूरज ।
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निकली नहीं
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कंजूस बादलों से
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एक भी बूँद ।
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तरस गये
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पहचान को खुद
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सावन-भादौं ।
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कहो तो सही
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मन प्राणों से तुम
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वक्त सुनेगा ।
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मुँह चिढ़ाए
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लम्बे-चौड़े पुल को
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सूखती नदी ।
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चिनगारियाँ
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फैल गईं नभ में
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चाँद निश्चिंत ।
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धूल ढँकेगी
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पत्तों की हरीतिमा
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कितने दिन ?
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है कोई रात
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जिसका अभी तक
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न हुआ प्रात ।
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कड़ी धूप में
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मशाल लिये खड़ा
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तन्हा पलाश ।
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ठीक वैसा ही
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सरहद पार भी
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हर्ष-विषाद ।
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वर्षा ने बुने
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शीशे की खिड़की पे
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बूँदों के तार ।
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मर जाएँगे
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हरियाली मरी तो
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हम सब भी ।
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20:26, 10 फ़रवरी 2018 के समय का अवतरण


1
ऊब चले हैं
वर्षा की प्रतीक्षा में
पेड़-पौधे भी।
2
पीने लगा है
धरती का भी पानी
प्यासा सूरज ।
3
निकली नहीं
कंजूस बादलों से
एक भी बूँद ।
4
तरस गये
पहचान को खुद
सावन-भादौं ।
5
कहो तो सही
मन प्राणों से तुम
वक्त सुनेगा ।
6
मुँह चिढ़ाए
लम्बे-चौड़े पुल को
सूखती नदी ।
7
चिनगारियाँ
फैल गईं नभ में
चाँद निश्चिंत ।
8
धूल ढँकेगी
पत्तों की हरीतिमा
कितने दिन ?
9
है कोई रात
जिसका अभी तक
न हुआ प्रात ।
10
कड़ी धूप में
मशाल लिये खड़ा
तन्हा पलाश ।
11
ठीक वैसा ही
सरहद पार भी
हर्ष-विषाद ।
12
वर्षा ने बुने
शीशे की खिड़की पे
बूँदों के तार ।
13
मर जाएँगे
हरियाली मरी तो
हम सब भी ।
-0-