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"उम्र तमाम / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर

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डरी–डरी आँखों में
 
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तिरते अनगिन आँसू
 
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इनको पोंछो
 
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वरना जग जल जाएगा ।
 
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उम्र तमाम
 
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कर दी हमने
 
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रेतीले रिश्तों के नाम ।
 
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औरत की कथा
 
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हर आँगन में
 
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तुलसी चौरे–सी
 
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सींची  जाती रही व्यथा ।
 
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स्मृति तुम्हारी-
 
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हवा जैसे भोर की
 
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अनछुई , कुँआरी ।
 
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माना कि
 
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झुलस  जाएँगे हम,
 
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फिर भी सूरज को
 
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धरती पर लाएँगे हम ।
 
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पलकों पे लरजते मोती
 
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इससे बड़ा सुधा-पान नहीं होगा
 
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इस जनम के वास्ते !
 
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जिसने पाया,वह भरमाया
 
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जिसने खोया,वह तो रोया
 
जिसने खोया,वह तो रोया

17:54, 11 फ़रवरी 2018 का अवतरण


22
डरी–डरी आँखों में
तिरते अनगिन आँसू
इनको पोंछो
वरना जग जल जाएगा ।
23
उम्र तमाम
कर दी हमने
रेतीले रिश्तों के नाम ।
24
औरत की कथा
हर आँगन में
तुलसी चौरे–सी
सींची जाती रही व्यथा ।
25
स्मृति तुम्हारी-
हवा जैसे भोर की
अनछुई , कुँआरी ।
26
माना कि
झुलस जाएँगे हम,
फिर भी सूरज को
धरती पर लाएँगे हम ।
27
पलकों पे लरजते मोती
गिरने नहीं देना,
धूल में मिलेंगे
किसके काम आएँगे !
लाओ मैं अँजुरी में भर लूँगा
आचमन कर लूँगा
इससे बड़ा सुधा-पान नहीं होगा
इस जनम के वास्ते !
28
जिसने पाया,वह भरमाया
जिसने खोया,वह तो रोया
पाना-खोना,यही है जीवन
आँसू से होता है तर्पण ।