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+ | महका था गगन। | ||
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+ | कभी घने बीहड़ | ||
+ | कभी किसी बस्ती में | ||
+ | काँटे भी सहे | ||
+ | कभी फ़ाक़े भी किए | ||
+ | पर रहे मस्ती में। | ||
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+ | तुमसे कभी | ||
+ | नेह का प्रतिदान | ||
+ | माँगूँ तो टोक देना | ||
+ | फ़ितरत है- | ||
+ | भला करूँ सबका | ||
+ | बुरा हो रोक देना। | ||
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14:12, 12 फ़रवरी 2018 के समय का अवतरण
11
छुपा है चाँद
आँचल में घटा के
हुई व्याकुल रात
कहे किससे
अब दिल की बात
गिरे ओस के आँसू।
12
उमग पड़ी,
खुशबू की सरिता
पुलकित शिराएँ।
'नहीं छोड़ेंगे'-
कहा जब उसने,
थी महकीं दिशाएँ।
13
लहरा गया
सुरभित आँचल,
धारा बनकरके
बहे धरा पे
सुरभित वचन;
महका था गगन।
14
बीता जीवन
कभी घने बीहड़
कभी किसी बस्ती में
काँटे भी सहे
कभी फ़ाक़े भी किए
पर रहे मस्ती में।
15
तुमसे कभी
नेह का प्रतिदान
माँगूँ तो टोक देना
फ़ितरत है-
भला करूँ सबका
बुरा हो रोक देना।