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"उर–कम्पन / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर
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| + | निर्मल ज्यों दर्पन | ||
| + | भावों–भरी मिठास, | ||
| + | सुख-दु: ख-से | ||
| + | सदा साथ रहेंगे | ||
| + | बनके परछाई। | ||
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| + | मन-सौरभ | ||
| + | करता सुरभित | ||
| + | प्राणों की अँगड़ाई, | ||
| + | भाव-डोर से | ||
| + | छाया-सी बँधी तुम | ||
| + | जीवन–अमरा॥ | ||
| + | 29 | ||
| + | बोल तुम्हारे | ||
| + | बने शीतल छाया | ||
| + | छतनार नीम की, | ||
| + | जीवन खिला | ||
| + | शब्दों का मधुरिम | ||
| + | स्पर्श मिला मन को। | ||
| + | 30 | ||
| + | छलती छाया | ||
| + | सगे-सम्बन्धी-जैसे | ||
| + | जब दुर्दिन आते, | ||
| + | मिलता कोई | ||
| + | हमको मीत साँचा | ||
| + | जो मन को भी बाँचे | ||
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14:17, 12 फ़रवरी 2018 का अवतरण
26
ज्ञान-उजेरा
ढक लिया हाथों से
हे क्षुद्र साहित्यकार?
'मैं-मै' का चढ़ा
जीवन में बुखार
इसे अब उतार।
27
उर–कम्पन
निर्मल ज्यों दर्पन
भावों–भरी मिठास,
सुख-दु: ख-से
सदा साथ रहेंगे
बनके परछाई।
28
मन-सौरभ
करता सुरभित
प्राणों की अँगड़ाई,
भाव-डोर से
छाया-सी बँधी तुम
जीवन–अमरा॥
29
बोल तुम्हारे
बने शीतल छाया
छतनार नीम की,
जीवन खिला
शब्दों का मधुरिम
स्पर्श मिला मन को।
30
छलती छाया
सगे-सम्बन्धी-जैसे
जब दुर्दिन आते,
मिलता कोई
हमको मीत साँचा
जो मन को भी बाँचे
