भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
हिज्जे
म्‍यॉमार म्‍यांमार की सड़कों पर खून ख़ून नहीं था<br>रोशनी भी नहीं थी वहांवहाँ<br>
हवा बंद थी सीखचों में<br>
और चुप थी दुनिया<br>
चुप थे लोग<br>
कि म्‍यॉमार म्‍यांमार की सड़कों पर खून ख़ून नहीं था<br><br>
म्‍यॉमार म्‍यांमार के लोगों का खून ख़ून बहुत गाढ़ा नहीं था<br>बहुत मोटी नहीं थी उनकी खालख़ाल<br>
बहुत गहरी नहीं थी उनकी नींद<br>
बहुत हल्‍के नहीं थे उनके सपने<br>
बहुत रोशनी नहीं थी उनके घरों में<br><br>
म्‍यॉमार म्‍यांमार की एक लड़की <br>
जो हवा थी<br>
बंद थी सींखचों में<br>
बहुत चीख चीख़ नहीं रही थी वो<br>
बस सोच रही थी<br>
सींखचों की बाबत<br>
सड़कों की बाबत<br>
लोगों की बाबत<br>
म्‍यॉमार म्‍यांमार की बाबत<br><br>
जब कि म्‍यॉमार म्‍यांमार की सड़कों पर खून ख़ून नहीं था<br>
जरूरत थी हवा की<br>
और हवा कैद थी सींखचों में<br>
लोग रहने लगे थे भूखे<br>
करने लगे थे आत्‍महत्‍या<br>
बगैर बग़ैर गिराए सड़कों पर एक बूंद खूनख़ून<br><br>
उलझन में थी हवा<br>
जिसे भड़काकर वह जलाना चाहती थी शोला<br>
पिघलाना चाहती थी लोहे के सींखचों को<br>
पर हवा कैद क़ैद थी सींखचों में<br>
लोग बंद थे घरों में<br>
और म्‍यॉमार म्‍यंमार की सड़कों पर खून ख़ून नहीं था<br><br>
यूं यूँ कुछ भी कर सकते थे लोग<br>
आ सकते थे घरों के बाहर<br>
तोड़ सकते थे जेल की दीवारें<br>
हवा को कर सकते थो आजादआज़ाद<br>
भड़का सकते थे आग पिघला सकते थे सींखचे<br>
पर म्‍यॉमार म्‍यंमार की सड़कों पर खून ख़ून नहीं था।
Anonymous user