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"बारिश / कुमार मुकुल" के अवतरणों में अंतर

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|संग्रह=परिदृश्‍य के भीतर / कुमार मुकुल
 
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पहले  बड़ी-बड़ी  छितराती बूंदें गिरीं
 
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सामने मैदान में चरती गाय ने  
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फिर चरने लगी
 
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बूंदों की दिशा में सिर घुमा
 
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और हारकर
 
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गाय से सटकर खड़ा हो गया
 
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एक कुत्‍ता
 
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करीब-करीब भागा जा रहा है
 
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जैसे बूंदें
 
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उसका जामा भिगो रही हों
 
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बूंदें गिर रही हैं एक तार
 
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पहले
 
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चितकाबर हो जाती है
 
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फिर टघरकर पानी
 
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कई लकीरों में
 
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नीचे चूने लगता है
 
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और नक्‍शा बनने लगता है कई मुल्‍कों का
 
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लकीरें बढती जाती हैं
 
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और एकमएक होती जाती हैं
 
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थोड़ी जगह सूखी है
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जैसे बकरे की खाल चिपकी हो
 
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अंत में  करीब-करीब वह भी
 
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मिटने लगती है
 
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बूंदें एकतार गिर रही हैं
 
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अब  कभी-कभी गाय को
 
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अपनी देह फटकारनी पड़ती है
 
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सिर को झिंझोड़  पानी झाड़ना होता है
 
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पर  उसका चब्‍बर-चब्‍बर चरना  जारी रहता है
 
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बूंदें गिर रही हैं एक तार
 
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दो घरेलू और एक पहाड़ी मैना
 
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पोल से सटे तार पर भीग रही हैं
 
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तार की निचली सतह पर
 
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बूंदें  दौड़ लगा रही हैं
 
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एक बूंद बनती है
 
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और ढलान की ओर भागती है
 
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और वह दूसरी बूंद से टकरा जाती है
 
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फिर तीसरी बूंद नीचे आ जाती है
 
फिर तीसरी बूंद नीचे आ जाती है
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बची बूंद दौड़ती है आगे की ओर
 
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यह चलता रहता है
 
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बूंदें गिर रही हैं एकतार
 
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नगर का नया बसता हिस्‍सा है यह
 
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भूभाग खाली हैं अधिकतर
 
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एक-आध मकान बन रहे हैं
 
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काफी पानी गिरने पर काम बंद हो जाएगा
 
काफी पानी गिरने पर काम बंद हो जाएगा
इसलिए  शुरूआती बारिश में काम तेज है
 
  
सिरों पर बोरियां डाले  मजदूर भाग रहे हैं
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छाता लिए ठीकेदार ढलाई ढकवा रहा है
 
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नीचे घास मिट्टी की सड़क पर
 
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मारूति में बैठा मालिक
 
मारूति में बैठा मालिक
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टुकुर-टुकुर ताक रहा है
 
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कभी शीशा जरा-सा खिसका कर
 
कभी शीशा जरा-सा खिसका कर
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कुछ चिल्‍लाता है वह ...
 
कुछ चिल्‍लाता है वह ...
तो मजदूर धड़फड़ाने लगते हैं
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पर आखिरकार बारिश
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तो मज़दूर धड़फड़ाने लगते हैं
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पर आख़िरकार बारिश
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उसका शीशा बंद करा देती है
 
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और मजूर हथेलियों से
 
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पसीना मिला पानी पोंछते  
 
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भागते रहते हैं
 
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बारिश टिक गयी है
 
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सीमेंट बहने लगा है
 
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कम पड़ गया है पालीथीन
 
कम पड़ गया है पालीथीन
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ठीकेदार काम रूकवा देता है
 
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मजूर सुस्‍ताते हुए
 
मजूर सुस्‍ताते हुए
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आकाश ताकने लगते हैं
 
आकाश ताकने लगते हैं
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डर है कि बारिश
 
डर है कि बारिश
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दोपहर बाद का काम
 
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बंद ना करा दे
 
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बूंदें गिरनी जारी हैं
 
बूंदें गिरनी जारी हैं
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थोड़ी दूर आगे छत पर  
 
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अधबने मकान की
 
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बिना चौखट की खिड़की पर
 
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ननद-भौजाई आ बैठी हैं
 
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लगता है खाना बना चुकी हैं वो
 
लगता है खाना बना चुकी हैं वो
और नहाकर उूपर आयी हैं
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ननद ने गुलाबी मैक्‍सी डाल रखी है
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और नहाकर ऊपर आई हैं
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ननद ने गुलाबी मैक्‍सी पहन रखी है
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और भौजाई भी गुलाबी साड़ी में है
 
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एक-दूसरे पर दोहरी होती
 
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केशों में कंघी कर रही हैं वे
 
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अचानक वे  उठकर
 
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सीढियों को भागती हैं
 
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किसी को भूख लग आयी होगी
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बूंदें गिर रही हैं
 
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जैसे पूरे दृश्‍य को  
 
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किसी ने तीरों से बींध डाला हो
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पूरा दृश्‍य फ्रीज है
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किसी ने तीरों से बींध डाला हो
बस चींटियां भाग रही हैं
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अपना ठिकाना बदल रही हैं वो पंक्ति में
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पूरा दृश्‍य फ्रीज है
बीच में रानी चीटीं है
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पीछे से मोटी-सी
 
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छोटे पंखों वाली कुछ चींटियों ने
 
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अंडे उठा रखे हैं
 
अंडे उठा रखे हैं
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बीच में कभी कोई कीड़ा आ जाता है
 
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तो पंक्ति टूटती है
 
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और उसे भी साथ लेकर
 
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चल पड़ती हैं वे
 
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फिर
 
फिर
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वही पंक्ति
 
वही पंक्ति
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इस कोने से उस कोने
 
इस कोने से उस कोने
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इस जहान से उस जहान।
 
इस जहान से उस जहान।
1998
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(रचनाकाल : 1998)

12:16, 6 अगस्त 2008 का अवतरण

पहले बड़ी-बड़ी छितराती बूंदें गिरीं

और सघन होती गयीं

सामने मैदान में चरती गाय ने

एक बार सिर ऊपर उठाया

फिर चरने लगी

और बछड़ा

बूंदों की दिशा में सिर घुमा

ढाही-सा मारने लगा

और हारकर

आख़िर

गाय से सटकर खड़ा हो गया


एक कुत्‍ता

पूँछ थोड़ी सीधी किए

करीब-करीब भागा जा रहा है

जैसे बूंदें

उसका जामा भिगो रही हों


बूंदें गिर रही हैं एक तार


पहले

गाय की पीठ भीगकर

चितकाबर हो जाती है

फिर टघरकर पानी

कई लकीरों में

नीचे चूने लगता है

और नक्‍शा बनने लगता है कई मुल्‍कों का

लकीरें बढती जाती हैं

और एकमएक होती जाती हैं

नीचे गाय के पेट की ओर

थोड़ी जगह सूखी है

जैसे बकरे की खाल चिपकी हो

अंत में करीब-करीब वह भी

मिटने लगती है


बूंदें एकतार गिर रही हैं


अब कभी-कभी गाय को

अपनी देह फटकारनी पड़ती है

सिर को झिंझोड़ पानी झाड़ना होता है

पर उसका चब्‍बर-चब्‍बर चरना जारी रहता है


बूंदें गिर रही हैं एक तार


दो घरेलू और एक पहाड़ी मैना

पोल से सटे तार पर भीग रही हैं

तार की निचली सतह पर

बूंदें दौड़ लगा रही हैं

एक बूंद बनती है

और ढलान की ओर भागती है

और वह दूसरी बूंद से टकरा जाती है

फिर तीसरी बूंद नीचे आ जाती है

बची बूंद दौड़ती है आगे की ओर

यह चलता रहता है


बूंदें गिर रही हैं एकतार


नगर का नया बसता हिस्‍सा है यह

भूभाग खाली हैं अधिकतर

एक-आध मकान बन रहे हैं

काफी पानी गिरने पर काम बंद हो जाएगा

इसलिए शुरूआती बारिश में काम तेज़ है

सिरों पर बोरियाँ डाले मज़दूर भाग रहे हैं

छाता लिए ठीकेदार ढलाई ढकवा रहा है

नीचे घास मिट्टी की सड़क पर

मारूति में बैठा मालिक

टुकुर-टुकुर ताक रहा है


कभी शीशा जरा-सा खिसका कर

कुछ चिल्‍लाता है वह ...

तो मज़दूर धड़फड़ाने लगते हैं

पर आख़िरकार बारिश

उसका शीशा बंद करा देती है

और मजूर हथेलियों से

पसीना मिला पानी पोंछते

भागते रहते हैं


बारिश टिक गयी है


सीमेंट बहने लगा है

कम पड़ गया है पालीथीन

ठीकेदार काम रूकवा देता है

मजूर सुस्‍ताते हुए

आकाश ताकने लगते हैं

डर है कि बारिश

दोपहर बाद का काम

बंद ना करा दे


बूंदें गिरनी जारी हैं


थोड़ी दूर आगे छत पर

अधबने मकान की

बिना चौखट की खिड़की पर

ननद-भौजाई आ बैठी हैं

लगता है खाना बना चुकी हैं वो

और नहाकर ऊपर आई हैं

ननद ने गुलाबी मैक्‍सी पहन रखी है

और भौजाई भी गुलाबी साड़ी में है

एक-दूसरे पर दोहरी होती

केशों में कंघी कर रही हैं वे


अचानक वे उठकर

सीढियों को भागती हैं

किसी को भूख लग आई होगी


बूंदें गिर रही हैं


जैसे पूरे दृश्‍य को

किसी ने तीरों से बींध डाला हो

पूरा दृश्‍य फ्रीज है

बस, चींटियाँ भाग रही हैं

अपना ठिकाना बदल रही हैं वो पंक्ति में

बीच में रानी चीटीं है

पीछे से मोटी-सी

छोटे पंखों वाली कुछ चींटियों ने

अंडे उठा रखे हैं

बीच में कभी कोई कीड़ा आ जाता है

तो पंक्ति टूटती है

और उसे भी साथ लेकर

चल पड़ती हैं वे

फिर

वही पंक्ति

इस कोने से उस कोने

इस जहान से उस जहान।


(रचनाकाल : 1998)