भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"बदल रहा है गाँव हमारा / गरिमा सक्सेना" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गरिमा सक्सेना |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
पंक्ति 10: पंक्ति 10:
 
बदल रहा है गाँव हमारा
 
बदल रहा है गाँव हमारा
  
जबसे मॉल खुला है तबसे
+
झाल-चाट को छोड़ सभी अब
 
पिजा-बरगर लगे हैं खाने  
 
पिजा-बरगर लगे हैं खाने  
धीरे-धीरे बंद हो रही
+
लोकगीत की धुन बिसराई
झाल-चाट की सभी दुकानें
+
लगे गूँजने फिल्मी गाने 
 
सेंडिल, बूट पहनने वाला  
 
सेंडिल, बूट पहनने वाला  
 
हुआ आधुनिक पाँव हमारा  
 
हुआ आधुनिक पाँव हमारा  

19:30, 8 मार्च 2018 के समय का अवतरण

नए दौर में नए तरह से
बदल रहा है गाँव हमारा

झाल-चाट को छोड़ सभी अब
पिजा-बरगर लगे हैं खाने
लोकगीत की धुन बिसराई
लगे गूँजने फिल्मी गाने
सेंडिल, बूट पहनने वाला
हुआ आधुनिक पाँव हमारा

छप्पर नहीं बचे हैं और न
गौरैयों का ठोर-ठिकाना
धीरे-धीरे जाल बिछाकर
शहर बुन रहा ताना-बाना
टावर, चिमनी खड़े हो गए
खोया पीपल छाँव हमारा

सूख रहे तुलसी के पौधे
बने सजावट गमले घर में
किट्टी पार्टी की रौनक है
काम बहुत है अब दफ्तर में
जहाँ कभी मिलते थे सब जन
नहीं रहा वह ठाँव हमारा