भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"सभी की सोच अलग है अलग दिशाओं में / अनिरुद्ध सिन्हा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनिरुद्ध सिन्हा |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

23:08, 13 मार्च 2018 के समय का अवतरण

सभी की सोच अलग है अलग दिशाओं में
ये कैसे लोग हैं शामिल तेरी सभाओं में

अभी ज़मीं पे अँधेरा है आसमां चुप है
कहीं तो चांद भी होगा इन्हीं घटाओं में

कहाँ से आई गुलाबों की ज़ेहन में खुशबू
किसी का हुस्न महकता है इन हवाओं में

तमाम लोग अकेले खड़े हैं महफ़िल में
कहीं तो खोट छुपी है तेरी वफ़ाओं में

ये शहर कितना ख़तरनाक हो गया यारो
चलो कि बैठ रहें जाके अब गुफाओं में