"कहा करती थी वह / कुमार मुकुल" के अवतरणों में अंतर
Kumar mukul (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार मुकुल |अनुवादक= |संग्रह=एक उ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
Kumar mukul (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 7: | पंक्ति 7: | ||
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | + | बहुत देर से समझ में आती है यह बात | |
कि शरीर के मायने नहीं कुछ खास | कि शरीर के मायने नहीं कुछ खास | ||
अगर उसमें एक ह्रदय धड़क ना रहा हो | अगर उसमें एक ह्रदय धड़क ना रहा हो |
15:31, 19 मार्च 2018 का अवतरण
बहुत देर से समझ में आती है यह बात
कि शरीर के मायने नहीं कुछ खास
अगर उसमें एक ह्रदय धड़क ना रहा हो
बात आस्थाओं और धारणाओं की नहीं है
जो सोच हमें परम्परा देती है
उसका कत्ल करना होगा
और बिना अपराध बोध के मान लेना होगा
कि हम ऐसा सोच लेते हैं
सिर्फ इसीलिए पापी नहीं हो जाते
मात्र अपनी पत्नी के संग सोने वाले लोग
अगर बाहर किसी को भूखा मार देने को तैयार हैं
तो केवल इसी बात पर उन्हें
इमानदार नहीं कहा जा सकता
ये सोना और शरीर और शादी
चरित्र नहीं बनाते
वह जो इतने लोगो को बनाना चाह रहा
आदमी सा कुछ
उसे चरित्र कहते हैं
वह जैसा है सादा सा
उसे चरित्र कहते है वह जैसा लिख पाता है
उसे इमानदार होना कहते हैं
वह जो निस्वार्थ चला आता है इतनी दूर तक
उसे मनुष्य होना कहते हैं
प्रेम में साथ रहें ना रहें
लेकिन रचना में रह जाने वाले लोग ही
प्रेम में रह पाते हैं ।