भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"गांव / ओम पुरोहित कागद" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ओम पुरोहित कागद |संग्रह=अंतस री ब...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

18:13, 31 मार्च 2018 के समय का अवतरण

दुहागण रो जायोड़ो,
गेलड़!
जको
न नूंवै बाप नै जचै
न पुराणै नै
अर
मा रै मोटी आफत
ना छोड सकै
ना राख सकै।
इण खातर बापड़ो
पड्यो है दूर—दूर
अळगो
आंतरो
थावसी
तपसी
मोडै री जात रो एकलो!